मिरगी [दौरे] से जुड़ी 13 भ्रांतियाँ [MYTHS ABOUT EPILEPSY IN HINDI]
विश्व स्वास्थ्य संगठन यानि WHO की एक रिपोर्ट की मानें तो दुनिया में करीब 5 करोड़ यानि करीब 0.8 प्रतिशत लोग मिर्गी नामक मानसिक बीमारी का शिकार हैं। इन लोगों में से 80 प्रतिशत ऐसे लोग हैं जो कम या फिर मध्यम वर्गीय आय वाले देशों में रहते हैं। अकेले अमरीका में ऐसे करीब 40 करोड़ लोग हैं जो इस बीमारी से जूझ रहे हैं।
मिर्गी की बीमारी का प्राथमिक लक्षण ‘दिमाग में पड़ने वाले दौरों’ को माना जाता है। ये दौरे दिमाग के ऐसे हिस्से में पड़ते हैं जहाँ पर ये शरीर के अन्य हिस्सों को गहराई से प्रभावित करते हैं व उनकी काम करने की क्षमता को प्रभावित करते हैं।
मिर्गी यानि epilepsy से जूझ रहे लोगों को सामाजिक कलंक यानि stigma का भी सामना करना पड़ता है, जिसे कि अच्छा नहीं माना जा सकता है। इस बीमारी से जुड़े कई सारे myths हैं जो पहली नजर में लगते तो एकदम सत्य हैं, मगर हैं नहीं। इस लेख में हम ऐसे ही 13 myths के बारे में चर्चा करने वाले हैं।
मिर्गी से जुड़ी गलत बातें [WRONG FACTS ABOUT MIRGI]
1. हर तरह का दौरा मिर्गी का ही होता है
यह बात पूरी तरह से सच नहीं है की, हर व्यक्ति जिसको दौरा पड़ता है, वह मिर्गी का शिकार है। कई बार दौरे low blood pressure की वजह से भी पड़ते हैं जिसका मिर्गी से कोई connection नहीं होता।
इसलिए यह जरूरी नहीं है कि जिस व्यक्ति को दौरे यानि seizure पड़ते हैं वह मिर्गी से पीड़ित हो ही हो।
2. मिर्गी से पीड़ित लोग सही से काम नहीं कर पाते
यह बात पूरी तरह से बेबुनियाद है कि मिर्गी से पीड़ित लोग सही से काम नहीं कर सकते।
हाँ कुछ मामलों में जैसे- truck driver बनने या फिर pilot बनने में उन्हें कुछ दिक्कत आ सकती है मगर अन्य ज्यादातर कामों के लिए वे अक्सर qualified होते हैं।
3. मिर्गी से पीड़ित लोग अक्सर emotionally weak होते हैं।
यह बात अक्सर बहुत ज्यादा मानी जाती है और सुनने को भी मिलती है कि मिर्गी से पीड़ित लोग अक्सर emotionally कमजोर होते हैं। ऐसे लोग अपने emotions को कंट्रोल नहीं कर पाते हैं और बहुत ज्यादा चिड़चिड़े या फिर गुस्सेल हो जाते हैं। यह बात पूरी तरह सच नहीं है।
कुछ मामलों में ऐसा हो सकता है मगर अक्सर देखा गया है कि मिर्गी से पीड़ित लोग काफी खुशमिजाज होते हैं।
4. मिर्गी एक मानसिक बीमारी है
ऐसा जरूरी नहीं है कि मिर्गी एक मानसिक बीमारी है। यह एक मानसिक बीमारी का रूप तभी धारण करती है जबकि इसकी condition काफी severe हो जाती है।
5. मिर्गी के हर दौरे में व्यक्ति अचेत हो जाता है
दौरा सुनने पर पहली जो चीज दिमाग में आती है वो है- अचेत होना। हालांकि ऐसा जरूरी नहीं है मिर्गी के दौरे में हर बार व्यक्ति बेहोश हो।
मिर्गी के दौरे 40 अलग-अलग तरह के हो सकते हैं। किसी में व्यक्ति सिर्फ blank हो जाता है उसे कुछ देर के लिए याद नहीं रह पाता कि वह आखिर कर क्या रहा था। किसी किसी में वह अचेत भी हो जाता है।
6. अगर किसी को मिर्गी का दौरा पड रहा है तो उसके मुहँ में कुछ ठूंस देने से उसे राहत मिलती है।
इस बात का कोई वैज्ञानिक प्रमाण मौजूद नहीं है। और यह पीड़ित के दांत और जबड़े को नुकसान पहुंचा सकता है इसलिए इस उपाय से दूर रहें।
7. दौरे के मरीज को हरकते करने से नियंत्रित करना चाहिए
यह काफी common myth है। मिर्गी का दौरा अक्सर आधे-से-डेढ़ मिनट तक चलता है और इस बीच पीड़ित काफी शारीरिक गतिविधियां करता है।
इस दौरान पीड़ित व्यक्ति को हरकते करने से नहीं रोकना चाहिए, जबतक कि ऐसा करना बहुत ही अधिक जरूरी ना हो।
इससे बेहतर होगा कि मरीज के साथ किसी व्यक्ति को बिठा दें जो उसे सहारा दे।
8. दौरे पड़ने के दौरान दर्द होता है
आमतौर पर मिर्गी के दौरे पड़ने पर दर्द नहीं होता है। हालांकि कुछ rare cases में ऐसा संभव है।
इसके अलावा कई लोगों को दौरा खत्म होने के बाद दर्द का एहसास हो सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि उन्हें दौरे के दौरान कोई चोट लग जाती है या फिर उनकी मासपेशियाँ जकड़ जाती है जो दर्द के लिए जिम्मेदार है।
9. जिन महिलाओं को दौरे पड़ते हैं उन्हें preganant नहीं होना चाहिए
दौरे के दौरान इंसान कुछ बार अपना होश खो देता है। हालांकि इसका यह मतलब बिल्कुल भी नहीं है उन्हें pregant नहीं होना चाहिए। हालांकि उन्हें काफी अधिक ध्यान रखने की आवश्यकता जरूर है।
10. दौरे के दौरान लोग अपनी जीभ निगल जाते हैं
वैज्ञानिकों के मुताबिक ऐसा संभव नहीं है कि कोई भी व्यक्ति किसी भी परिस्थिति में अपनी जीभ को निगल ले। हालांकि ऐसा हो सकता है कि पीड़ित अपनी जीब या फिर होंठों को किसी तरह का कोई नुकसान पहुंचा दे।
11. मिर्गी के दौरों का कोई इलाज नहीं है
यह सरासर एक बड़ा झूठ है। एक शोध में पाया गया है कि 10 में से 7 लोगों को anti-epilespic drug के उपयोग भर से ही राहत मिल जाती है।
सही medication लिया जाए तो मिर्गी का इलाज बहुत अधिक कठिन नहीं है। हालांकि वैज्ञानिक इसके और भी बेहतर और advanced treatments पर शोध कर रहे हैं और संभावना है कि आने वाले कुछ वर्षों में इसका बेहतर इलाज संभव हो पाए।
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