वृद्ध का कटोरा – जैसी करनी वैसी भरनी
एक परिवार शहर में बड़े ठाठ-बाट से रह रहा था।
पिता नौकरी किया करते थे जिससे पूरे परिवार का गुजारा चलता था।
पिता ने अपने बेटों की परवरिश में कोई कमी नहीं छोड़ी, उन्हें अच्छे विद्यालयों में शिक्षा दी और साथ ही साथ शादी भी बड़े धूम-धाम से कराई।
वक्त गुजरा, पिता वृद्ध होने लगे। अब घर उनके बेटे चलाने लगे।
कई बार होता कि बुढ़ापे के कारण उनके हाथ से खाना गिर जाता या फिर दूध फर्श पे फैल जाता, या फिर कोई चीज टूट जाती तो इसपर उनके बहू-बेटे कई बातें सुना दिया करते थे।
एक दिन रात को डिनर टेबल पर पूरा परिवार साथ बैठकर खाना खा रहा था, तभी वृद्ध पिता के चम्मच से थोड़ी सी सब्जी मेज पर गिर गई।
बेटे और बहुओं को पिता की इस आशिष्टाचार पर काफी क्रोध आया।
बेटों ने अगले ही दिन अपने पिता के लिए एक विशेष लकड़ी का पात्र तैयार कर लिया जिसमें वे भोजन कर पाएँ।
साथ ही साथ कमरे के एक कोने पर उनके लिए भोजन करने की भी खास व्यवस्था कर दी गई।
अगले ही दिन जब परिवार के सभी सदस्य डिनर टेबल पर भोजन ग्रहण कर रहे थे तो परिवार का एक नन्हा सदस्य जमीन पर बैठकर लकड़ी से कुछ बना रहा होता है।
उसके माता-पिता उससे पूछते हैं कि वह क्या कर रहा है । इसपे उसका जवाब होता है कि वह उनके बुढ़ापे के लिए कटोरा तैयार कर रहा है इसमें वे अपना भोजन ग्रहण कर सके।
वृद्ध के बेटे और बहुओं को उसी क्षण अपनी गलती का एहसास हो जाता है। उन्हें महसूस हो जाता है कि जैसा वे अपने मातापिता के साथ करेंगे वैसा ही भविष्य में उनके बच्चे उनके साथ करेंगे।
अपनी गलती मानकर और पिता से क्षमा मांगकर बेटे और बहूएं पिता को वापिस पूरे परिवार के पास डैनिंग टेबल पर ले जाते हैं और वे सब साथ मिलकर भोजन करते हैं।
कहानी की शिक्षा- इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हम जैसा दूसरों के साथ करते हैं वैसे ही कभी ना कभी हमारे साथ भी घटित होता है। यही प्रकृति का नियम है।
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