जन्म-मृत्यु, सफलता का नुस्खा

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बहुत बड़ा रंगमंच देश की जानी मानी हस्तियों से भरा हुआ…… और सामने हज़ारों की सभा……

ये सभा विश्वविख्यात साइंटिस्ट धीरज के सम्मान के लिए आयोजित की गयी है……

सभी ने उनका सम्मान किया….. और उन्हें अपने २० साल के जीवन की यात्रा का अनुभव पुछा……

तथा उन्हें पुछा की साइंटिस्ट का काम ही है बड़े से बड़ा कार्य आसानी से कम समय में हो इसकी युक्ति खोजना…. तो इतनी कम उम्र में आप विश्वविख्यात बने उसकी कौनसी युक्ति आपके पास है…. अर्थात नुस्खा क्या है आपकी सफलता का?…..

बुद्धिजीवी साइंटिस्ट धीरज ने बहुत ही सरल और सहजता से बताया की…..

“सफलता का नुस्खा है जन्म-मृत्यु……”

सभी को बहुत आश्चर्य हुआ…. आगे वो कहने लगे की…..

“मैंने अपनी सफलता की यात्रा में सौ बार से अधिक मृत्यु को स्वीकार किया है और सौ बार से अधिक बार जन्म लिया है…..

आपको आश्चर्य होना लाजमी है परन्तु ये नुस्खा (फार्मूला) आप किसी भी प्रकार कि सफलता प्राप्त करने के लिए उपयोग कर सकते हो और ये १००% काम करता है…..”

सभा सुनने के लिए व्याकुल हुई…..

“जब मैं मात्र १२ साल का था तब मैं जिस विषय का आज तज्ञ हूँ उसमे चार बार फेल हो चूका था….. निराश होकर मैं घर से आ_त्म_ह_त्या के विचार से निकला….. एक ब्रीज पर बैठकर मैं रो रहा था….. और निचे गहरे पानी को देखकर कुदने का मन बना रहा था…… लगभग ९९% मैंने खुद को तैयार किया और कूदने के लिए तैयार हो गया….. तभी मेरी पीठपर पीछे से हाथ रखा किसीने…..

मैंने मुड़कर देखा तो एक अनजान व्यक्ति था…… मगर मैं बहुत परेशान था…. इसीलिए उनका हाथ हटाकर…. आगे चलने लगा….. मन में सवाल था, ये कौन है?…..

और इसी समय यहाँ आना था….. यहाँ से कब जायेंगे?……. ताकि मैं?…….”

वो व्यक्ति मेरे पीछे-पीछे चलकर रुकने को कहने लगा मगर मैं चलता रहा…… आखिर उन्होंने कहा की,

“मरने जा रहे थे न?”

ये सुनकर मैं डर गया…… और कुछ पलों के लिए रुक गया….. लेकिन फिर चलने लगा…..

तभी उन्होंने आगे कहाँ की,

“मैं मरने का आसान तरीका बताता हूँ….”

ये सुनकर मेरे शरीर के रोंगटे खड़े हो गए।

न चाहते हुए मैं मूड गया….. और उस व्यक्ति को देखने लगा….. बहुत प्यार से वो मुझे देख रहे थे और मुस्कुराये…..

मेरी आँखों से लगातार आंसू बहने लगे……. उन्होंने मेरे आंसू पोंछे और मुझे लेकर ब्रीजपर कोने में बैठ गए और पुछा, बात क्या है?…..

मैंने रोते-रोते ही अपने फेल होने की बात बता दी….. और निराशा से आ_त्म_ह_त्या की बात भी बता दी……

सारी बात सुनकर सीधा सार में आते हुए उन्होंने पुछा की…..

“पास होते हो, तो आ_त्म_ह_त्या नहीं करोगे ?……”

मुझे आश्चर्य हुवा…… मेरा उत्तर हाँ ही होगा…… आगे उन्होंने कहाँ की…..

“मैंने तुमसे कहाँ था की मरने का आसान तरीका बताऊंगा….. क्या पास होने के लिए मर सकते हो ?….”

अभी तो मैं बुरी तरह से मुंझ गया…… मेरे हाव भाव से ही वो समझ गए….. और आगे बोलने लगे….

“मेरी बात ध्यान से सुनो….. जीवन में जो भी तुम चाहते हो…. वो करने के लिए ही केवल जीते रहोगे ….. तो उस कार्य में असफलता मिलती जाएगी।….

असफलता को ही अणि मृत्यु मानकर….. आने वाले पल को दुबारा नया जन्म समझकर फिर से उसी कार्य में जुट जाओ…

मरे हुए इन्सान पर किसी भी असफलता का कोई असर नहीं होता…… और नए जन्म और जीवन में पुरानी असफलता की कोई गिनती नहीं होती….. सिर्फ सफलता की एक नयी कोशिश होती है…..”

बस…. उस दिन से लेकर….. आजतक हर असफलता के सामने मैं मर जाता हूँ…… और तुरंत ही नया जन्म लेकर फिर सफल होने का प्रयत्न करता हूँ… सारी सभा तालियों से गूंजने लगी…….

सीख :

  • जन्म – हर सफलता पाने के लिए हमारा जन्म है ये समझ कर जीवीत रहते चलना है……
  • मृत्यु – किसी भी असफलता वा समस्या के सामने खुद को मृतक घोषित करके….. नया जन्म लेना है……

क्योंकि नए जन्म में पुरानी असफलताओं की कोई गिनती नहीं होती और कोई भी असफलता वा समस्या किसी भी मृतक का कुछ भी बिगाड़ नहीं सकती….

इसके लिए शरीर को समाप्त करने की आवश्यकता नहीं है….. ये तो मात्र खुदकी विश्वास और मान्यताओं का खेल है इसीलिए कुछ लोगों का शरीर नहीं है फिर भी दुनिया में वो जिन्दा है…… और बहुत सारे जिन्दा लोग शरीर होते हुए भी मृतक की तरह जी रहे है…….

इसीलिए हर असफलता के बाद खुद को नया जीवन देके सफल होने का प्रयत्न जो करेगा, सफलता उसके कदम चूमेगी।

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