अति उत्साह नुकसानदेह हो सकता हैं

बोधप्रत कहानियाँ

बहुत पुरानी बात है, एक ढोलकिया अपने पत्नी और बेटे के साथ एक छोटे से गांव में रहता था।

वह ढोल बजाने में बहुत ही कुशल था। वह जब भी किसी विवाह, त्योहार या मेले में ढोल बजाने जाता तो अपने पुत्र को हमेशा साथ ले जाता था।

धीरे-धीरे उसका पुत्र भी ढोल बजाने में कुशल हो गया और अपने पिता के साथ ढोल बजाने लगा।

एक दिन पास के शहर के एक यात्री ने उनका ढोल सुना तो उसे बहुत पसंद आया। वह प्रसन्न होकर उनके पास जाकर बोला, “हर साल मेरे शहर में मेला लगता है। तुम दोनों उसमें जाकर ढोल बजाओ।”

ढोलकिया और उसका बेटा अगले ही दिन उस शहर के लिए निकल पड़े, क्योंकि वहां मेला लगा हुआ था।

दोपहर को वे लोग-मेले में पहुंच गए। मेले में काफी भीड़ थी। दूर-दूर से लोग मेले में आए हुए थे।

मेले के बीच में जाकर ढोलकिया और उसका बेटा ढोल बजाने लगे। ढोल की थाप लोगों को बहुत अच्छी लगी और उनके चारों ओर देखते ही देखते लोग इकट्ठे हो गए।

कुछ तालियां बजाने लगे तो कुछ मोहित होकर नाचने लगे। ढोलकिया ने नीचे एक सफेद चादर बिछा रखी थी।

लोगों ने जी खोलकर उन्हें पैसे दिए। शाम तक काफी पैसे इकट्ठे हो गए।

शाम होने पर सारे पैसे पाकर ढोलकिया बहुत प्रसन्न हुआ। यह खुशखबरी वह अपनी पत्नी को देने के लिए जल्दी घर पहुंचना चाहता था।

अंधेरा घिरना शुरू हो रहा था। घर का रास्ता जंगल से होकर गुजरता था। उस जंगल में डाकुओं का बसेरा था।

ढोलकिया ने अपने पुत्र से कहा, “चुपचाप, बिना आवाज किए जंगल से निकल चलें, यहां डाकुओं का बसेरा है।” मेले की सफलता के कारण ढोलकिया का पुत्र कुछ ज्यादा ही आश्वस्त हो गया था।

उसने कहा, “हम लोग ढोल बजाते हुए ही जंगल से जाएंगे। इससे डाकू भी डरकर दूर ही रहेंगे।” वह जोर से ढोल बजाते हुए जंगल से गुजरने लगा।

पिता के बार-बार शांत रहने के अनुरोध पर उसने जरा-सा भी ध्यान नहीं दिया। डाकुओं ने जंगल में ढोल की आवाज सुनी, तो उन्हें लगा कि कोई बड़ा काफिला जंगल से गुजर रहा है। उन्होंने पेड़ों के पीछे छुपकर खोज-बीन शुरू कर दी।

उन्हें केवल ढोलकिया और उसका बेटा ही दिखाई दिए। पल भर की भी देर किए बिना उन्होंने पिता और पुत्र को पकड़कर उनका सारा धन उनसे ले लिया। ढोलकिया और उसका बेटा अपना सब कुछ खो चुके थे और खाली हाथ घर जाने को मजबूर थे।

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