बच्चों को गुणी बनाने के कुछ आसान से तरीके 

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Children hold signs as parents, children and supporters gathered on the northeast corner of Herndon and Palm Avenues to urge re-opening of schools Thursday, Sept. 3, 2020 in Fresno.

हमारे घर-परिवार की रौनक और भविष्य बच्चों पर ही निर्भर करता है। अगर हमारे बच्चे गुणी या प्रतिभाशाली होते हैं तो निश्चय ही अपने भावी जीवन में पूरी उन्नति कर पाते हैं तथा घर-परिवार की समृद्धि का कारण बनते हैं।

इसके विपरीत यदि बच्चों के गुणों या उनकी प्रतिभा के विकास में कुछ कमी रह जाती है तो वे जीवन में अपेक्षित उन्नति नहीं कर पाते हैं।

इसीलिए बच्चों की भावी उन्नति का मार्ग प्रशस्त करने के लिए उनमें श्रेष्ठ गुणों के रोपन तथा उनकी प्रतिभा को विकसित करने पर विशेष ध्यान देना अनिवार्य है।

हम अपने बच्चों को गुणी और प्रतिभावान बनाने के लिए नीचे दिए गए कुछ बहुत ही आसान से तरीके अपना सकते हैं।

१) उचित वाणी व्यवहार

बच्चे जन्म के बाद जैसे-जैसे बड़े होते हैं अपने माता-पिता व परिवार के लोगों के संपर्क में रहकर बोलचाल की भाषा सीखते हैं। घर में जो और जैसी भाषा बोली जाती है बच्चे उसे ही सीख लेते हैं और फिर उसे ही अपने वाणी व्यवहार में ढाल लेते हैं।

अतः बच्चों को शुरू से ही ऐसी भाषा का ज्ञान दें जिसमें आदर सूचक शब्दों, जैसे कि बड़ों के नाम के साथ ‘जी’ लगाना, गलती होने पर ‘साॅरी या मुझे क्षमा करें’,किसी के द्वारा मदद किए जाने पर उसका आभार प्रकट करते हुए ‘आपका धन्यवाद ‘ आदि सम्मिलित हों।

इसके अलावा उन्हें शुरू से मीठी या मधुर वाणी बोलने की आदत डालें ताकि भविष्य में उनका वाणी कौशल इतना अधिक प्रभावशाली या आकर्षक हो कि सभी उसका लोहा मान लें।

२) उचित सामाजिक व्यवहार 

बच्चे अपने घर-परिवार के लोगों के साथ सम्मानजनक भाषा में बोलना सीख जाएं तो फिर उनके सामाजिक व्यवहार पर ध्यान दें। उन्हें सिखाएं कि समाज में एक-दूसरे से मिलजुलकर रहना और एक-दूसरे की मदद करना जरूरी होता है। समाज में सबके साथ सम्मानजनक भाषा में बात करना भी जरूरी होता है।

बच्चों में आप यह गुण उनके दैनिक क्रियाकलाप के माध्यम से आसानी से दे सकते हैं।

बच्चों का सामाजिक व्यवहार में कुशल होना उनकी भावी उन्नति में बहुत काम आता है। इस तरह वे अपनी व्यवहार कुशलता के बल पर जीवन में आने वाली समस्याओं का बड़ी आसानी से समाधान करते हुए निरंतर आगे बढ़ सकते हैं।

३) सामान्य सूझ-बूझ की शक्ति 

व्यक्ति अपनी सामान्य सूझ-बूझ का उचित उपयोग करके अपने बहुत से बिगड़े काम बना लेता है और साथ ही गलत काम या खुद की हानि करने से भी बच जाता है,क्योंकि ऐसा व्यक्ति अपना हर काम करने में पूरा धैर्य दिखाता है और बिना सोच-विचार किए कोई भी काम नहीं करता।

इसीलिए बच्चों में सामान्य सूझ-बूझ का समुचित विकास करना या उन्हें इस शक्ति से संपन्न बनाना भी हमारा कर्तव्य है। हम बच्चों में इसका विकास उनके रोज के छोटे-छोटे कार्यों पर ध्यान देते हुए उन्हें काम के उचित तरीकों से परिचित कराने के माध्यम से करा सकते हैं।

उदाहरणतः मान लो बच्चा बिना बात के पत्थर आदि उठाकर किसी कुत्ते को मारने की कोशिश करे तो उसे समझाया जा सकता है कि ऐसा करने से कुत्ते को चोट लग सकती है, क्रोध में आकर वह उसे काट भी सकता है और पत्थर कुत्ते के बजाय किसी व्यक्ति को जाकर भी लग सकता है।

अगर बच्चे को ऐसा समझाया जाएगा तो निश्चय ही वह भविष्य में इस काम को करने से पहले इसके परिणामों पर विचार करेगा।

४)  नैतिक व्यवहार की मजबूती 

हम और आप सभी जानते हैं कि जिन लोगों को नैतिक व्यवहार की कीमत का पता नहीं होता या फिर जिनके नैतिक व्यवहार पतित हो चुका हो होता है वे गंभीर अपराध या असामाजिक कार्यों को आसानी से अंजाम दे देते हैं।

इस तरह उनका अपना जीवन तो खराब होता ही है, साथ ही समाज की भी बड़ी हानि होती है।

इसी वजह से यह अनिवार्य बन जाता है कि बच्चों के नैतिक व्यवहार को गढ़ने तथा उसे मजबूत बनाने वाले गुण उनमें शुरू से ही रोपने चाहिए। हमें बच्चों को नैतिक तौर पर मजबूत बनाने के लिए उन्हें नैतिक साहित्य तथा महापुरुषों की जीवनियां पढ़ने के लिए प्रेरित करना चाहिए।

उन्हें नैतिक व्यवहार का अभ्यास कराते रहना चाहिए और साथ ही उन लोगों की संगत से दूर रखना चाहिए जो अनैतिक गतिविधियों के लिए बदनाम होते हैं।

५) प्रगतिशील सोच का धनी

व्यक्ति की समृद्धि और उसके सारे सुखों का आधार उसकी प्रगतिशील सोच ही बनती है। अपनी इसी सोच के कारण व्यक्ति किसी काम में असफलता या नाकामयाबी मिलने पर हार मानकर नहीं बैठता, बल्कि पुनः-पुनः प्रयास कर संघर्ष जारी रखने की हिम्मत जुटा पाता है और निश्चित तौर पर सफल होकर दिखाता है।

मनुष्य में ऐसे गुण तभी पनपते हैं जब बचपन से ही उसमें इन गुणों को रोपने का प्रयास किया जाए।

अतः बच्चों के भावी विकास या प्रगति को ध्यान में रखते हुए उनमें इस तरह के गुण पैदा करने की कोशिश अवश्य करते रहें। बच्चों में आप इस तरह के गुण तभी रोप सकते हैं जब उनके संपर्क में रहकर और उनकी प्रत्येक गतिविधि का विश्लेषण करके उनका मार्गदर्शन करने के साथ-साथ उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा देते रहें।

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