मन को स्वस्थ रखने के लिए इन आदतों को छोड़ दे

मन के रोगी पाते हैं क्या-क्या कष्ट जानिए छुटकारा पाने के लिए कुछ उपाय 
जीवन को सुख और शांति से जीने के लिए शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक तौर पर स्वस्थ या सेहतमंद बने रहना भी अनिवार्य होता है।
अगर मनुष्य शरीर से स्वस्थ या सेहतमंद होता है तथा उसका मन रोगी होता है तो मान लेना चाहिए कि वह आधा ही स्वस्थ है, क्योंकि तन का स्वस्थ व नीरोग रहना तब काम आता है जब मन भी स्वस्थ व नीरोग हो।
अगर ऐसा नहीं होता है तो तन के सुख भी बीमार मन की वजह से दुख में बदल सकते हैं।
परिणामस्वरूप मनुष्य सबकुछ होते हुए भी दुखी रहता है और कष्ट भोगता है।
सबसे गंभीर या सोचने वाली बात तो यह है कि तन के रोग तो सबके सामने प्रकट हो जाते हैं मगर मन की अधिकांश बीमारियां सबसे छिपी ही रहती हैं।
अगर उनके विषय में दूसरों को पता चलता है तो तभी चलता है जब वे गंभीर रूप धारण कर लेती हैं या मनुष्य उनको अपने भीतर छिपाकर रख पाने में असमर्थ हो जाता है।
अक्सर हम मन के रोगों को छोटी- मोटी बात समझकर टाल देते हैं और उनका निराकरण करने के लिए बहुत कम प्रयास करते हैं जबकि हमें ऐसा नहीं करना चाहिए।
एक सत्य यह भी है कि अपने मन को रोगी बनाने या बनाए रखने का काम भी हम स्वयं ही करते हैं।
अगर हम नियमित रूप से प्रयास करें तो तन के साथ-साथ मन से भी बड़ी आसानी से स्वस्थ रह सकते हैं। आइए मन को स्वस्थ या सेहतमंद बनाए रखने के लिए किन आदतों को छोड़ना बेहद जरुरी है।
१) खुद को हीन या सबसे पिछड़ा समझना
हम में से अनेक लोग ऐसे होते हैं जिन्हें अपने खुद के बारे में ही गलत सोचने की आदत पड़ जाती है।
वे सामान्यतः अपनी आधे से ज्यादा ऊर्जा तो खुद की तुलना दूसरों से करते रहने में ही खपा देते हैं और खुद को हीन या पिछड़ा समझने लगते हैं।
भला फिर मन की शांति और सुख कैसे पाएं।
हमें कभी खुद की तुलना दूसरों से नहीं करनी चाहिए।
इसके विपरीत हमें अपने काम व व्यवहार की तुलना दूसरे के काम या व्यवहार से अवश्य करनी चाहिए और उनसे अच्छा करने का प्रयास करना चाहिए।
उनकी खामियों को त्याग कर अच्छाइयों को पकड़ना चाहिए ताकि उन्हें यह एहसास हो सके कि हम में भी कुछ दम है और हम भी दस लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत बनने के काबिल हैं।
२) बेकार की जलन, ईर्ष्या या वैर का शिकार रहना
कई लोगों का मन दूसरों के प्रति बेकार में या अकारण ही जलन, ईर्ष्या या वैर भाव पाले रखता है तथा इसी कारण कष्ट या दुविधा में पड़ा रहता है।
ऐसे मनुष्य से किसी का भी सुख या उन्नति बर्दाश्त नहीं होती है और वह बाहर से सामान्य होते हुए भी अंदर ही अंदर अपने आसपास के लोगों से कटा रहता है।
मनुष्य के मन की यह स्थिति और लोगों पर तो कोई खास प्रभाव नहीं दिखाती मगर खुद के मन को बहुत गहरा कष्ट पहुंचती है।
मनुष्य की वास्तविक हंसी-खुशी और कुछ खास कर दिखाने की सारी शक्ति व ऊर्जा को चट कर जाती है।
इसीलिए अगर जीवन में मेलजोल के साथ जीते हुए सुख और कामयाबी की सीढ़ी चढ़ना चाहते हैं तो अपने मन को इस रोग से हमेशा बचाने का प्रयास कीजिए।
दूसरों की उन्नति या कामयाबी की प्रशंसा करना और उनकी खुशी में शामिल होना सीखिए।
३) शक, संदेह अथवा अनावश्यक चिंता 
जो लोग परमात्मा में विश्वास रखते हैं और मानते हैं कि जो करना है उन्हीं को करना है तथा जो होना है उन्हीं की इच्छा से होना है ऐसे लोग अनावश्यक शक, संदेह तथा चिंता से बचे रहते हैं।
उनमें धैर्य और स्थिरता होती है तथा वे जीवन की परिस्थितियों का ज्यादा बेहतर ढंग से सामना कर पाते हैं।
इसके विपरीत जो लोग अनावश्यक शक, संदेह या चिंता के कारण अपने मन को रोगी बना लेते हैं वे अक्सर कष्ट झेलते हैं।
ऐसे व्यक्ति जरा-सी असामान्य परिस्थितियों में भी किसी अनहोनी घटना के भ्रम या संदेह से ग्रस्त हो जाते हैं मानसिक कष्ट उठाए बिना नहीं रहते।
इसीलिए अपने मन में इस प्रकार की कमजोरियों को कभी भी जगह न बनाने दें।
खुद को इस काबिल बनाने की कोशिश करें कि आपके स्वभाव में धैर्य तथा दृढ़ता आए और आप विपरीत परिस्थितियों का सामना बेहतर ढंग से कर पाएं।
इसके लिए आपको ध्यान-योग, व्यायाम आदि के द्वारा मन की मजबूती को प्राप्त करना चाहिए।
४) क्रोध, भय और लोभ से अनावश्यक प्रीति
क्रोध, भय और लोभ कम या अधिक मात्रा में सबके स्वभाव का हिस्सा होते हैं मगर जब इनकी अति हो जाती है तो ये मानसिक विकृति बन जाते हैं और मन के दुख या कष्ट का कारण बनते रहते हैं।
ये मनुष्य की सेहत और उसकी आयु को आघात पहुंचाने वाली सबसे खतरनाक विकृतियां हैं और इसीलिए इनसे छुटकारा पाना अनिवार्य है।
इनमें घिरा हुआ मनुष्य कभी भी स्वस्थ या सेहतमंद होने का दावा कर ही नहीं सकता, क्योंकि ये उसके साथ रोग बन कर घूमते रहते हैं।
इन मन के रोगाणुओं से छुटकारा पाने का सबसे अच्छा तरीका है कि दूसरों को माफ़ करना सीखें, ईश्वर में पक्का भरोसा रखकर व उनको अपनी शक्ति समझकर समस्त प्रकार के भय से मुक्त रहें और जो भी आपके पास है उसी में सुख व संतोष से जीना सीखें।
इस बात को हमेशा याद रखें कि हमारे जीवन का उद्देश्य सुख और संतोष से जीना होता है तथा इन्हें पाने के लिए धन की नहीं बल्कि मन की मजबूती की जरूरत होती है। अतः अपने मन को मजबूत बनाने प्रयास लगातार करते रहिए।

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