बच्चों के भावात्मक विकास को सही दिशा देने के लिए करें ये काम
मनुष्य जीवन में शारीरिक और मानसिक अथवा भावनात्मक स्वास्थ्य का बहुत अधिक महत्व होता है।
क्योंकि मनुष्य अपने जीवन में मनचाही उन्नति और खुशहाली तभी हासिल कर पाता है जब वह शारीरिक एवं भावात्मक रूप से स्वस्थ या सेहतमंद होता है।
किसी भी व्यस्क नागरिक को जिम्मेदार और कर्मठ व्यक्ति के तौर पर तभी देखा जा सकता है जब वह शारीरिक रूप से स्वस्थ होने के साथ-साथ भावात्मक तौर पर भी स्वस्थ या संपूर्ण हो।
कोई भी व्यस्क व्यक्ति भावात्मक या मानसिक तौर पर स्वस्थ या सेहतमंद तभी हो सकता है जब उसके बचपन से ही इस दिशा में पूरा ध्यान दिया जाए।
अक्सर देखने में आता है कि लोग बच्चों के शरीर को तो स्वस्थ या शक्तिशाली बनाने पर अच्छा-खासा ध्यान देते हैं मगर उनके भावात्मक विकास की ओर पूरा ध्यान देने से चूक जाते हैं।
परिणामस्वरूप बच्चे भविष्य में अच्छे ताकतवर शरीर के बावजूद भावात्मक कमजोरी के कारण अनेक क्षेत्रों में पिछड़ जाते हैं और अपेक्षित प्रगति करने से वंचित रह जाते हैं।
अतः बच्चों के शारीरिक विकास के साथ-साथ उनके भावात्मक या मानसिक विकास को भी सही दिशा देना अनिवार्य है।
बच्चों के भावात्मक विकास को सही दिशा देने के लिए माता-पिता या अभिभावक यहां उल्लेखित कुछ उपाय कर सकते हैं।
1) स्नेह तथा अपनेपन का गहरा एहसास
स्नेह तथा अपनेपन का एहसास बच्चों के शारीरिक व भावात्मक दोनों ही प्रकार के विकास के लिए अद्भुत टाॅनिक का काम करता है।
इस एहसास के कारण बच्चे खुद को अपने माता-पिता या रिश्तेदारों से प्रगाढ़ता से जुड़े होने का अनुभव पाते हैं तथा खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं।
उनका मन खुशी तथा उमंग से भरा रहता है तथा चिंता या तनाव उनसे कोसों दूर बने रहते हैं।
इसी कारण उनके शरीर तथा मन दोनों को स्वतंत्र रूप से विकसित होने में मदद मिलती है।
2) घर-परिवार का माहौल
बच्चे अपने स्वभाव से ही ऐसे होते हैं कि वे सदैव अपने माता-पिता या परिवार जनों का अनुकरण करने का प्रयास करते हैं और जो गुण उनमें मौजूद होते हैं उनको आसानी से ग्रहण कर लेते हैं।
इसीलिए यह अनिवार्य हो जाता है कि बच्चों को घर-परिवार में ऐसा माहौल मिले जिसमें अवगुणों या बुराई के स्थान पर सदगुणों या अच्छाई की सुहावनी बयार बहती हो।
अगर ऐसा होगा तो बच्चे स्वतः ही अच्छाई या अच्छे गुणों को अपने स्वभाव का हिस्सा बना लेंगे और उनके भावात्मक विकास की नींव मजबूत होगी।
इसलिए अपने घर के माहौल को सदा बेहतर बनाने का प्रयास करें।
3) अपनों की प्रेरणा और मार्गदर्शन
बच्चे बड़ों की तरह सही-गलत का फैसला कर पाने में खुद को असमर्थ पाते हैं।
उनमें आमतौर पर इतनी समझ नहीं होती कि वे अपनी मर्जी से कोई ऐसा मार्ग चुन सके जो उन्हें भावी उन्नति की ओर लेकर जाए।
उनको ऐसा मार्ग सुझाने तथा उस पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा देने और मार्गदर्शन करने का कार्य माता-पिता को ही करना होता है।
अगर माता-पिता ऐसा कर पाने में सक्षम होंगे तो निश्चय ही बच्चे सही दिशा में जाएंगे और उनकी सोच को सकारात्मकता का बल मिलेगा।
इसी कारण उनमें कभी कोई भावात्मक कमजोरी पैदा न हो सकेगी।
4) उदार चरित्र व व्यवहार की सीख
बच्चा कोमल टहनी की तरह होता है और आप उसे जिस दिशा में मोड़ना चाहें आसानी से मोड़ सकते हैं।
इसके अलावा बच्चा उस गीली मिट्टी के समान भी होता है जिसे आप जो भी आकार देना चाहें सरलता से दे सकते हैं।
बच्चों की इसी प्रकृति का लाभ माता-पिता या उनके अभिभावक उठा सकते हैं।
वे बचपन से ही बच्चों के आचार-व्यवहार व चरित्र में ऐसे गुण पैदा कर सकते हैं जो भविष्य में उनकी खुद की उन्नति में तो सहायक हों ही साथ ही उनके परिवार व समाज की प्रगति में भी योगदान दें।
5) आपसी प्रेम व सहयोग भावना का विकास
बच्चों के स्वभाव में सदा ऐसे गुणों या खूबियों को रोपित करने का प्रयास करें जो उनके लिए आगे चलकर यानी जब वे बड़े हों तो उन्हें आपसी प्रेम व सहयोग भावना के अनूठे फल देने वाले पेड़ बन सकें।
इस बात पर सदा ध्यान दें कि आपसी प्रेम व सहयोग भावना जीवन में तनाव एवं चिंता रहित बने रहने में काफ़ी मददगार साबित होते हैं।
6) कल्याणकारी जीवन-शैली की आदत
आजकल के इस आधुनिक युग में मनुष्य की जीवन-शैली में कुछ ऐसी खामियां पैदा हो गयी हैं जो उसके स्वाथ्य को खराब करने तथा उसमें रोग पैदा करने में खास भूमिका निभाती हैं।
आप देख सकते हैं कि आजकल नौजवान लोग भी ऐसी बीमारियों को झेल रहे हैं जो कभी वृद्धावस्था में व्यक्ति को अपना शिकार बनाया करती थीं।
इसीलिए यह बहुत जरूरी है कि बच्चों को शुरू से ही ऐसी जीवन-शैली का आदी बना दिया जाए जो भविष्य में उन्हें शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ बनाकर रख सके। वे उचित खान-पान व रहन-सहन को अपनाएं तथा आपनी शक्ति व सोच का सही दिशा में प्रयोग कर सकें।
7) मानसिक कुंठाओं या विकृतियों से बचाव
बड़े हों या बच्चे मानसिक कुंठाएं या विकृतियां जिसमें भी घर कर जातीं हैं उसका जीना मुश्किल कर देतीं हैं।
बड़े तो इनसे मुक्ति पाने के लिए स्वयं भी कुछ उपाय कर लेते हैं मगर बच्चे ऐसा करने में खुद को हमेशा असमर्थ ही पाते हैं।
बच्चों या बडों में पनपने वाली कुछ सामान्य कुंठाएं हीनता,ईर्ष्या, क्रोध,चिड़चिड़ापन,भय,आदि हैं।
अतः बच्चों के साथ सदा ऐसा व्यवहार करें तथा उन्हें ऐसा माहौल दें कि वे ऐसी बुराइयों से बचकर रह सकें।
अगर इसके लिए आपको चिकित्सक की मदद लेनी पड़े तो वह भी लें मगर बच्चों को हर कीमत पर भावात्मक रूप से स्वस्थ रखने का प्रयास करें।
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