मस्तराम का लालच | GREED STORY IN HINDI

मस्तराम की कहानिया मस्तराम का लालच

एक बार की बात है। एक गाँव में एक ब्राह्मण किसान रहता था। किसान की भगवान में बेहद गहरी आस्था थी।

एक बार किसान अपने खेत में हल चला रहा था तभी उसका सामना एक नाग से हो गया।

भगवान में गहरी आस्था होने के कारण किसान ने उसे नागदेवता का रूप समझ लिया और उसे किसी भी प्रकार की कोई क्षति नहीं पहुंचाई। नाग किसान को देखते ही अपने बिल में छुप गया।

किसान को आत्मग्लानि हुई कि नागदेवता को उसके कारण कष्ट उठाना पडा। उसने जुताई पूरी की और वापस घर लौट आया।

घर वापस आकर किसान इस घटना पर पुनर्विचार कर रहा था कि तभी उसे एक युक्ति सूझी।

उसने विचार किया कि अगर वह नागदेवता के लिए एक पात्र में दूध लेकर जाए तो शायद नागदेवता उसे क्षमा प्रदान कर सकते हैं।

वह उसी शाम को एक कटोरे में दूध लेकर नागदेवता के पास पहुंचा।

उसने आसपास देखा तो नाग उसे कहीं नहीं दिखा। उसने दूध बिल के ही पास एक कोने में रख दिया और यह सोचकर वहाँ से चला गया कि नागदेवता को और कष्ट देना सही नहीं है, वे जब बाहर आएंगे तो स्वत: ही दूध का पान कर लेंगे।

इसके बाद जब वह सुबह खेत में पहुंचा तो उसए बेहद आश्चर्य हुआ।

उसका दूध का पात्र खाली पड़ा था और उसमें एक सोने का सिक्का पड़ा था।

यह देखकर किसान की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। इसके बाद किसान ने नागदेवता को नमन किया और खुशी-खुशी वहाँ से घर को चला गया।

अब किसान हर शाम को नागदेवता के लिए दूध का कटोरा लेकर जाता और सुबह को सोने की अशर्फी लेकर घर लौट आता। यह क्रम कई वर्षों तक चलता रहा।

नागदेवता की कृपा से अब वह ब्राह्मण किसान कोई मामूली किसान नहीं रह गया था बल्कि वह एक बड़ा जमींदार बन गया था साथ-ही-साथ उसने शहर में भी अपना स्वयं का व्यापार शुरू कर दिया था।

गाँव के सभी लोग उसकी शानो-शौकत से चकित हो जाते। लेकिन किसान इसे बस नागदेवता की कृपा मानकर अपना काम करता रहा और कभी अपनी संपत्ति पर घमंड नहीं किया।

एक रोज किसान को व्यापार के किसी आवश्यक कार्य से नगर में जाना था। हालांकि उसे नागदेवता के लिए दूध पहुंचाने की भी उचित व्यवस्था करनी थी।

इसके लिए उसने अपने वरिष्ट पुत्र ‘मस्तराम’ को नागदेवता को हर शाम दूध पहुंचाने का कार्य सौंपा।

मस्तराम ने अपने पिता को आस्वाशन दिया कि वह यह कार्य भली-भांति करेगा। इस तरह ब्रह्मण किसान निश्चिंत होकर नगर की ओर प्रस्थान कर दिए।

सूरज ढला, शाम हुई।

मस्तराम पिता के कहे अनुसार खेत में गया और नागदेवता के बिल के पास दूध का कटोरा लेकर वापिस घर चला गया।

सुबह जब वह वापस खेत में लौटा तो उसने देखा कि कटोरे में एक सिक्का पड़ा है।

उसने वह कटोरा और सिक्का उठाया और घर की ओर लौट चला।

मस्तराम महत्वकांक्षी प्रवृत्ति बालक था।

खेत से वापिस घर लौटते समय वह विचार कर रहा था कि मेरे पिता भी कितने मूर्ख है कि वर्षों से उस नाग को दूध दे रहे हैं।

जब वह नाग हर रोज एक सिक्का देता है, तो यदि उसे मार दिया जाए तो उसके शरीर से ऐसे कई सिक्के निकाले जा सकते हैं।

यह विचार करते हुए वह घर पहुँच गया।

फिर शाम हुई। मस्तराम दूध का कटोरा लेकर घर से निकला, आज उसके हाथ मे एक बांस का लट्ठ भी था।

आज उसके इरादे कुछ नेक नहीं प्रतीत हो रहे थे।

खेत में पहुंचते ही उसने बिल के पास कटोरा रखा और बिल के पास ही खेत के एक कोने में छिपकर दृश्य देखने लगा।

उसके हाथ में वह बांस का डंडा मौजूद था और वह नाग के बाहर निकलने का इंतज़ार कर रहा था।

कुछ समय पश्चात नाग ने बिल के बाहर झाँका। उसने दूध के कटोरे से दूध पीने के लिए अपना फन डाला।

थोड़े ही समय में उसने कटोरे को पूरी तरह रिक्त कर दिया। अब नाग ने अपना फन उठाया और उसमें सोने का सिक्का डालने लगा।

मस्तराम ने जैसे ही यह दृश्य देखा, वह खेत में चुपके-चुपके बिल के पास आ गया और डंडा ऊपर उठाकर अपनी पूरी शक्ति से नाग के फन पर वार किया।

नाग डंडे के एक ही प्रहार से बेसुध हो गया।

तत्पश्चात मस्तराम ने उसपर कई और वार किये ताकि वह निश्चिंत हो सके कि वह मर चुका है।

नागदेवता को मारने के बाद मस्तराम बहुत प्रसन्न महसूस कर रहा था और उसे अपने कार्य पर काफी गर्व महसूस हो रहा था।

अब उसने नाग के शरीर को फाड़ने का कार्य शुरू किया।

उसे पूर्ण विश्वास था कि नाग के शरीर में हजारों सोने के सिक्के होंगे जिससे वह एक ही झटके में अमीर बन जाएगा।

लेकिन यह क्या जैसे ही उसने नाग के शरीर को फाड़ना शुरू किया उसकी आशाएँ, निराशाओं में बदलना शुरू हो गईं।

नाग के शरीर से रक्त और अंगों के अतिरिक्त कुछ नहीं निकला।

मस्तराम सर पकड़कर बैठ गया।

उसे अपनी गलती का एहसास हो गया था।

उसे इस बात की बेहद ग्लानि हो रही थी कि लालच ने उसे कितना अंधा बना दिया था।

उसे इस बात का डर भी बहुत सता रहा था कि जब उसके पिता नगर से लौटेंगे तो वह उन्हें क्या उत्तर देगा।

कुछ दिनों पश्चात उसके पिता नगर से लौटे। उसने उन्हें पूरा घटनाक्रम साफ-साफ बताया।

उसके पिता माथा पकड़कर बैठ गए। मन ही मन अपने मूर्ख पुत्र के कार्यों के लिए नाग देवता से क्षमा याचना करने लगे और प्रायश्चित करने लगे क्योंकि यही सब था जो वे अब कर सकते थे।

कहानी की शिक्षा- इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हम जो भी कार्य करें वह लालच के आवेश में आकर ना करें। क्योंकि लालच अत्यंत खतरनाक है।

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