ईश्वर में गहरी आस्था का मतलब है कई शारीरिक व मानसिक रोगों से छुटकारा, जानेंगे तो जरूर मानेंगे
इस संसार में दो तरह के इंसान पाए जाते हैं।
पहले तरह के इंसान वे हैं, जो ईश्वर को मानते हैं अर्थात् , उसमें आस्था रखते हैं और दूसरी तरह के वे लोग हैं, जो ईश्वर को नहीं मानते मतलब नास्तिक टाइप के हैं।
हम यहां नास्तिक टाइप के लोगों पर तो कोई चर्चा नहीं करेंगे पर आस्तिक या ईश्वर को मानकर चलने वाले लोगों के बारे में गहन चर्चा करेंगे तथा उनके बारे में कुछ सकारात्मक बातें बताएंगे।
इस बात से तो सभी वाकिफ हैं कि जो लोग ईश्वर को मानने वाले होते हैं वे इस संसार की हर चीज़ में ईश्वर को देखते हैं और अपने जीवन को भी ईश्वर का स्मरण करते हुए या उसमें घुल-मिलकर जीने की कोशिश करते हैं।
वे अपने जीवन में घटित होने वाली हर छोटी-बड़ी घटना या उसमें आने वाले हर सुख-दुख का श्रेय ईश्वर को ही देते हैं।
क्या आप सोच सकते हैं कि ईश्वर में उनकी गहरी या सच्ची आस्था का कोई ताल्लुक उनकी सेहत से भी हो सकता है, या ईश्वर में आस्था उन्हें कई तरह के शारीरिक व मानसिक रोगों से बचाती है?
आप कुछ भी सोचें पर यह सोलह आने सच है कि जो लोग ईश्वर में गहरी आस्था रखते हैं, वो कई तरह की शारीरिक व मानसिक बीमारियों से बचे राहते है, तथा वे काफी स्वस्थ और लंबा जीवन जीते हैं।
आइए, जानें कैसे।
१) अनावश्यक तनाव या चिंता से मुक्ति
ईश्वर में आस्था रखकर जीने वाला व्यक्ति अनावश्यक तनाव या चिंता का शिकार कभी नहीं बनता है, क्योंकि वह अपना प्रत्येक कार्य करने से पूर्व ईश्वर को याद करता है, तथा उसका प्रिय पात्र बने रहने की आशा में अथवा ईश्वर के कोप के डर से अक्सर उन गलत या अनैतिक कार्यों को करने से बचता है जो तनाव या चिंता का कारण बनते हैं।
ऐसा व्यक्ति सदैव सन्मार्ग पर चलने तथा सत्कर्मों को
करने में रुचि लेता है।
और इसी वजह से बेवजह का तनाव, चिंताएं व परेशानियां उससे दूर ही बनी रहती हैं।
२) उदारता, सामाजिकता, सकारात्मकता के गुण
जो लोग ईश्वर में गहरी आस्था रखते हैं आमतौर पर ह्रदय से उदार, सोच सकारात्मक और सामाजिक जिम्मेदारियों को समझने वाले लोग होते हैं।
क्योंकि उनमें दूसरों के प्रति दया भाव होता है और वे सामाजिक कार्यों या समाज सेवा में बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं।
अपने हित के साथ-साथ अन्य लोगों के हितों के बारे में भी सोचते हैं। फलतः उनकी सोच सदैव सकारात्मक बनी रहती है।
अपने इन्हीं गुणों के कारण उनमें सेहत या स्वास्थ्य के लिए जोखिम पैदा करने वाली मानसिक कुंठाएं, या विकृतियां नहीं पनपती और वे सदा स्वस्थ या फिट बने रहते हैं।
3) सही खान-पान व आराम की आदत
आदमी की अधिकांश बीमारियों का कारण उसका गलत खान-पान और उसको उचित आराम या विश्राम न मिल पाना भी बनते हैं।
साफ बात है ईश्वर को मानकर चलने वाले बंदे की सोच यही होती है कि समय पर जैसा सादा भोजन मिल जाए चैन से खा लो और आराम करो।
इसके अलावा ईश्वर मे श्रद्धा रखने वाले लोग गलत खान-पान की आदतों से भी बचते हैं।
वे ईश्वर में विश्वास करके सात्विक भोजन कर समय पर भरपूर आराम या नींद लेते हैं फालतू की उम्मीद दिल में कभी नहीं पालते।
उनकी यह आदत भी उन्हें स्वास्थ्य संबंधी कई परेशानियों से बचाकर रखती है तथा स्वस्थ जीवन प्रदान करती है।
४) मिलनसारिता, सबकी सेवा या कल्याण भावना
ईश्वर में सच्ची आस्था रखने वाले सबको ईश्वर की संतान मानकर किसी से भेदभावपूर्ण व्यवहार नहीं करते।
सबसे मिलकर खुश होते हैं तथा सबकी मदद के लिए तैयार रहते हैं।
इस कारण उनके स्वभाव में मिलनसारिता का गुण पैदा हो जाता है।
इसके अलावा वे कभी भी किसी अनावश्यक लालच या स्वार्थ में पड़कर परहित की सोच का त्याग नहीं करते।
वे अपने कल्याण के साथ-साथ दूसरों के कल्याण के लिए भी खुलकर कार्य करते हैं।
उनकी यही प्रवृत्ति उन्हें सबका लोकप्रिय बनाकर रखती है तथा सब आड़े वक़्त में उनकी सहायता के लिए तैयार रहते हैं।
इसी वजह से वे चिंता रहित प्रसन्न जीवन व्यतीत करते हैं और रोग या बीमारियों से बचे रहते हैं।
५) ईश्वर ध्यान से खुद को रोगमुक्त करने का गुण
ईश्वर में आस्था रखकर जीने वालों में एक खास बात यह भी होती है कि वे अपना जीवन निश्चिंतता के आधार पर जीते हैं।
उनके जीवन में जब भी कोई विकट समस्या, गहरी चिंता या अन्य विपत्ति आती है और वे कुछ कर नहीं पाते हैं तो उससे छुटकारा पाने एक अजब तरीका अपनाते हैं।
वे अपने ऊपर आई चिंता या विपत्ति को ईश्वर पर टालकर खुद को निश्चिंत कर लेते हैं।
उनकी सोच होती है कि जिस ईश्वर ने दुख दिए हैं वही उन्हें दूर करेगा या सुख देगा फिर वे बेकार में चिंता क्यों करें?
उनके बेकार में चिंता करने से कुछ नहीं होगा।
इसी कारण वे अपने ईश्वर ध्यान के जरिए अपनी समस्त चिंताओं को ईश्वर पर टाल देते हैं तथा उनसे चिंता मुक्ति की प्रार्थना कर खुद को शांत व चिंता रहित कर सामान्य जीवन जीने की ताकत पाते हैं।
शांति से सोते-जागते और काम करते हैं। उनकी यह प्रवृत्ति भी उन्हें स्वस्थ व नीरोग रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
अंततः हम यही कहेंगे कि ईश्वर में सच्ची आस्था रखने वाले मनुष्य के स्वभाव में वे सब उदार गुण स्वतः ही उत्पन्न हो जाते हैं जो उसको स्वस्थ, नीरोग और प्रसन्न बनाए रखने के लिए अनिवार्य होते हैं।
तथा साथ ही उसे एक भला या अच्छा इंसान बनाते हैं।
इसीलिए ईश्वर में आस्था रखकर जीने की आदत डालिए सदा स्वस्थ या सेहतमंद होकर प्रसन्नता से जीवन व्यतीत कीजिए।
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