अपनी सोच को अपनी ताकत कैसे बनाएं? जानिए कुछ Unique Tips…

अपनी सोच को अपनी ताकत कैसे बनाएं

हमारी सोच का हमारे काम-काज और आचार-व्यवहार पर गहरा प्रभाव रहता है।

हम अपनी सोच से ही अच्छे- बुरे, महान अथवा तुच्छ बनते हैं।

हमारी सोच ही हमें कमजोर और ताकतवर बनाती है।

अगर सोच न हो तो जीवन में कुछ नहीं हो, क्योंकि जीवन की गति सोच के कारण ही है और जीवन के समस्त सुख-दुख का आधार हमारी सोच ही बनती है।

इसीलिए अगर हम सोचना बंद कर दें, तो जीवन में कुछ न बचे। हम जिंदा होते हुए भी मुर्दा बनकर रह जाएं।

अब सवाल यह उठता है कि अगर सोच का हमारे जीवन में इतना ही महत्व है तो फिर हमें सुखी और संपन्न जीवन जीने के लिए अपनी सोच को कैसा रखना चाहिए।

या अपनी सोच को उचित दिशा में कैसे परिष्कृत करना चाहिए।

और क्या अपनी सोच को अपनी ताकत बना कर हम जीवन में सुख-समृद्धि पा सकते हैं?

तो इस सवाल का जवाब है…. ‘हां’।

हम अपनी सोच को अपनी ताकत बनाकर जीवन को बेहतर या सुखमय ढंग से जी सकते हैं।

आइए जानें कि हम अपनी सोच को अपनी ताकत कैसे बना सकते हैं।

१) मन को अच्छी सोच के लिए प्रेरित करके

सोच मन में पैदा होती है और मन जैसी सोच को जन्म देता है मनुष्य को वैसे ही कार्य करने के लिए प्रेरित करता है।

मन की सोच अच्छी होती है तो मनुष्य अच्छे कार्य करने की ओर ज्यादा ध्यान देता है।

तथा यदि मन की सोच बुरी होती है तो वह अधिकांशतः बुराई के कर्म में रत रहने की कोशिश करता है।

ऐसी अवस्था में खुद के लिए तो दुख या कष्ट उपजता ही है।

साथ ही दूसरों के दुखों का कारण भी बनता है और अंततः पश्चाताप ही करता दिखाई देता है।

मन में उपजने वाली बुरी सोच को व्यक्ति की कमजोर सोच भी कहा जा सकता है।

इस तरह की सोच से मुक्ति पाने एवं अपनी सोच को मन की ताकत बनाने का सबसे उपयुक्त तरीका है, अपने मन को हमेशा अपने नियंत्रण में रखना अथवा मन पर नियंत्रण रखने की क्षमता प्राप्त करना।

निरंतर अभ्यास के बल पर मन को नियंत्रण में रखने की क्षमता आसानी से प्राप्त की जा सकती है।

इस प्रक्रिया में ध्यान, योग, चिंतन आदि का सहारा लेंगे तो बेहतर परिणाम सामने आएंगे।

२) भावात्मक कमजोरी लाने वाली सोच से बचकर

मनुष्य के शरीर में कितना ही बल और तेज क्यों न हो और वह कितना ही शक्तिशाली क्यों न हो, जब तक उसमें भावात्मक कमजोरी बनी रहती है तब तक उसकी सारी शक्ति या सारा बल व्यर्थ है, क्योंकि इसके अभाव में वह किसी भी प्रकार का पराक्रम या साहसिक कार्य नहीं कर पाता है।

शरीर साथ देता भी है तो मन कमजोर पड़ जाता है।

इसी कारण कुछ कर गुजरने की हिम्मत, हौसला, उमंग या जोश वह कम ही दिखा पाता है।

इस तरह की भावात्मक कमजोरी का कारण भी अधिकांशतः हमारी सोच ही बनती है।

जब हम सकारात्मक सोचते हैं तो खुद को भावात्मक एवं शारीरिक रूप से मजबूत व ताकतवर पाते हैं तथा जो करना चाहें कर दिखाते हैं।

इसके विपरीत जब हम नकारात्मक सोचते हैं तो हमारे भीतर भावात्मक कमजोरी पनप जाती है जिसके कारण शरीर में पूरी ताकत होने के बावजूद हम कुछ खास नहीं कर पाते।

अक्सर हार का ही मुंह देखते हैं।

इसीलिए अपनी सोच को हमेशा सकारात्मक बनाए रखने की कोशिश कीजिए ताकि भावात्मक पक्ष मजबूत बना रहे और आप अपनी पूरी क्षमता से कार्य कर जीवन में मनचाही सफलता पा सकें।

३) मानसिक कुंठाओं से मुक्त होकर

कभी-कभी मनुष्य कई प्रकार की मानसिक कुंठाओं का शिकार हो जाता है।

जैसे…. हीनता, भय, ईर्ष्या, क्रोध, अहंकार, चिड़चिड़ापन, तनाव आदि।

इन्हीं मानसिक कुंठाओं या विकृतियों के कारण वह कभी भी शांत भाव से नहीं रह पाता और न ही कभी सहज भाव से कुछ अच्छा सोच पाता।

उसकी विकृत सोच उसकी कमजोरी बन जाती है जो उसकी अंदरूनी ताकत को हजम कर जाती है, क्योंकि उसकी अधिकांश ऊर्जा तनाव या व्यर्थ की चिंताओं में खप जाती है।

इसी कारण वह जीवन के हर क्षेत्र में पिछड़ जाता है।

किसी भी काम में एकाग्रचित्त होकर अपनी पूरी ताकत का इस्तेमाल नहीं कर पाता।

धैर्य और सहनशीलता उसके चरित्र से सदा के लिए नाता तोड़ लेते हैं।

इसीलिए किसी भी प्रकार की मानसिक कुंठा को अपने भीतर जगह मत बनाने दीजिए।

खान-पान का ध्यान रखिए और तन-मन को स्वस्थ बनाए रखने के लिए नियमित रूप से व्यायाम कीजिए।

सबसे मिलकर रहिए और खुलकर जीने की कोशिश कीजिए।

नियमित रूप से खुद का विश्लेषण करके अपने अंदर दिखने वाली खामियों को दूर करते रहिए।

फिर भी अगर कोई मानसिक विकृति आप पर हावी होती दिखे तो निस्संकोच किसी मनोचिकित्सक से मिलकर उसका उपयुक्त उपचार करवाइए।

४) ईश्वर में आस्था रखकर

मनुष्य हर क्षण या हर पल न जाने क्या-क्या देखता और सोचता है।

साथ ही न जाने कैसी-कैसी परिस्थितियों का सामना करता है।

ऐसे में सुख देने वाली या विपदा से बचाकर रखने वाली सोच का दृढ़ता से पालन करना उसके लिए कठिन हो जाता है और अक्सर कहीं-न-कहीं परिस्थितियां उसको गलत सोचने के लिए मजबूर कर देती हैं।

और इसी कारण वह मुसीबत आदि में फंस जाता है। ऐसी सोच के कारण बाद में उसे अक्सर पछताना पड़ता है।

इसीलिए हमेशा ईश्वर में आस्था रखकर उनसे अपने मन व विचारों की शुद्धि की प्रार्थना कीजिए।

जब भी मन में कोई गलत विचार पनपे तुरंत ईश्वर को याद कर मन-ही-मन उस विचार से मुक्ति हेतु ईश्वर से विनती कीजिए।

सोते-जागते ईश्वर का स्मरण करके अपनी सोच को सकारात्मक रखने का संकल्प कीजिए।

साथ ही कुछ देर ईश्वर के ध्यान या चिंतन के जरिए चित्त को शांति और विचारों को सर्वकल्याणकारी रूप में ढालने का प्रयास कीजिए।

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