फिलिप को नया जीवन देने वाला साहसी, बुद्धिमान रॉबिन
एक समय आयरलैण्ड में एक धनवान व्यक्ति अपनी पत्नी के साथ रहता था।
उसका एक सात वर्ष का पुत्र था उसका नाम फिलिप था। प्राचीनकाल में स्पेन के राजा के नाम पर ही उसका नाम रखा गया था।
इकलौता होने के कारण फिलिप अपने माता-पिता की आँखों का तारा था। एक दिन फिलिप बगीचे में अपने मित्रों के साथ खेल रहा था कि अचानक वह गायब हो गया।
पति-पत्नी ने अपने पुत्र को बहुत ढूँढा, नौकरों ने भी हर संभव जगह उसे ढूँढा पर वह न मिला।
उन्होंने पुत्र को ढूँढने वाले के लिए काफी बड़े इनाम की घोषणा करी। कई वर्ष बीत गए पर फिलिप का कोई समाचार न मिला।
उसी शहर में रॉबिन नाम का एक लुहार रहता था। वह दयालु, सहृदय और बहादुर होने के साथ-साथ चतुर भी था।
लुहार में एक और विशेषता थी कि वह स्वप्न को समझ लिया करता था।
एक रात रॉबिन ने स्वप्न में फिलिप को देखा। फिलिप एक सुंदर सफेद घोड़े पर सवार था।
रॉबिन के पूछने पर उसने कहा कि उसे ‘कैरिगमहोन’ (ये एक फिलिपाइन्स की कहानी Folk है) नाम के दैत्य ने अगवा कर लिया है और अपना सेवक बनाकर रखा हुआ है।
फिर उसने रॉबिन से प्रार्थना की, ‘‘श्रीमान्! कृपया मुझे दैत्य के चंगुल से छुड़ा लीजिए।
मैंने बहुत दिनों तक उसकी सेवा की है। वह हम जैसों को सात वर्ष के लिए रखता है। मैंने वह अवधि पूरी कर ली है।
पर तबतक स्वतंत्र नहीं हो सकता जबतक कोई आकर मुझे यहाँ से न ले जाए।’’ रॉबिन ने तब पूछा, ‘‘अरे, तुम हो कौन भाई? तुम सपने में हो या सच में हो?’’
लड़के ने उत्तर दिया, ‘‘श्रीमान्, मैं धनवान व्यक्ति का पुत्र फिलिप हूँ। यदि आपको विश्वास नहीं है तो यह रहा प्रमाण…’’
और यह कहकर उसने अपने घोड़े की लात धीरे से रॉबिन को लगा दी। हड़बड़ाकर रॉबिन की नींद खुल गई।
उसे लगा कि वह सपना देख रहा था। घोड़े के पंजे का निशान अपनी ललाट पर देखकर वह आश्चर्यचकित रह गया।
उसे पक्का विश्वास हो गया कि जो कुछ भी उस लड़के ने कहा था वह सत्य था।
रॉबिन ने अपने स्वप्न के विषय में बहुत विचार किया और अंततः उसने फिलिप को दैत्य से छुड़ाने का मन बना लिया।
स्वप्न के लड़के के बताए अनुसार दैत्य ‘कैरिगमहोन’ एक चोटी पर रहता था।
अगले दिन रॉबिन ने वहाँ जाने की तैयारी कर ली। अपने लोहे के हल को अस्त्र के रूप में साथ लेकर चल पड़ा।
कई दिनों की यात्रा करके वह उस चोटी पर पहुँचा। वहाँ पहुँचकर एक सरोवर के मध्य में एक बड़ा महल देखा।
उस महल की आकृति बड़ी ही विचित्र थी। प्रवेशद्धार भद्दी और भयभीत करने वाली आकृतियों के कारण बड़ा ही विचित्र एवं भयानक लग रहा था।
पलभर के लिए रॉबिन का आत्मविश्वास डगमगा गया। मन ही मन उसने सोचा, ‘‘यह मैंने क्या किया है? मैं मूर्ख हूँ क्या जो इस भयानक स्थान पर आने का निर्णय लिया। पर अब मैं वापस भी तो नहीं जा सकता… पर देखा जाएगा जो होगा।’’
महल के भीतर प्रवेश करते ही उसने एक मेज के चारों ओर विशालकाय आकृतियों को बैठकर वार्ता करते देखा।
मेज के मुखिया के स्थान पर ‘मैकमोहन’ बैठा था जो कि उन सबमें शानदार दिख रहा था।
उसने रॉबिन को भीतर प्रवेश करते देख लिया और एक झटके से अपने स्थान से खड़ा हुआ।
उसके पीछे रखा एक बड़ा पत्थर उसके झटके से कई टुकड़ों में विभाजित हो गया।
एक तीव्र दृष्टि रॉबिन पर डालते हुए उसने पूछा, ‘‘हे! कौन हो तुम? यहाँ क्यों आए हो? क्या चाहिए तुम्हें?’’
रॉबिन पहले तो बहुत भयभीत हो गया पर फिर साहस बटोरकर बोला, ‘‘श्रीमान्! मैं फिलिप को ले जाने आया हूँ।’’
‘‘फिलिप, वह कौन है?’’ दैत्य ने पूछा।
रॉबिन ने कहा, ‘‘धनवान व्यक्ति का पुत्र, फिलिप।’’
दैत्य की भयंकर गर्जना से पूरा महल हिल गया। उसने पूछा, ‘‘किसने तुम्हें यहाँ भेजा है?’’
रॉबिन ने कहा, ‘‘किसी ने नहीं मैं स्वयं ही आया हूँ। मुझे पता चला है कि फिलिप के सेवाकाल की अवधि पूरी हो गई है अब उसे अपने माता-पिता के पास वापस जाना है। आप सात वर्षों के पश्चात् किसी को अपनी सेवा में नहीं रख सकते हैं। हाँ, यदि कोई उस बालक को लेने न आए तब आप अवश्य उसे रख सकते हैं।’’
दैत्य ने सोचा कि अब तो उसे अपने एक सेवक से हाथ धोना पड़ेगा।
तुरंत उसने एक युक्ति सोची और रॉबिन से कहा, ‘‘ठीक है, तुम फिलिप को ले जा सकते हो। मैं तुम्हें बस एक अवसर दूँगा। तुम्हें सही-सही बताना होगा कि फिलिप कौन है। यदि तुमने उसे पहचान लिया तो तुम उसे ले जा सकते हो अन्यथा तुम जीवित महल से बाहर नहीं जा पाओगे।’’
रॉबिन फिलिप को नहीं पहचानता था, फिर भी उसने दैत्य की बात मान ली।
महल के भीतर एक बड़े कमरे में दैत्य रॉबिन को ले गया।
वहाँ एक ही उम्र के बहुत सारे बच्चे थे जिन्होंने एक ही तरह के कपड़े पहने हुए थे।
रॉबिन ने मन में विचार किया… ‘‘अब तो शायद मैं जीवित यहाँ से वापस न जा पाऊँ। मैं इनमें से फिलिप को कतई नहीं पहचान सकता।’’
दैत्य ने रॉबिन से पुनः कहा, ‘‘ये हैं वे सब, आओ! आकर बताओ कि फिलिप कौन है?’’
भय के कारण रॉबिन के बंद होंठ सूख गए, चेहरा पीला पड़ने लगा उसकी आँखें बंद हो गईं। उसे लगा कि उसे यदि फिलिप को ढूँढना है तो दैत्य से मित्रता करनी होगी।
ऐसा विचार आते ही मित्रता के भाव से उसने दैत्य से कहा, ‘‘श्रीमान्, इतने सारे बच्चों को देखकर बहुत अच्छा लगा। सब के सब स्वस्थ और प्रसन्न नजर आ रहे हैं। आपने इनका बहुत प्रेम से ध्यान रखा है इसमें कोई संदेह नहीं है।’’
रॉबिन की इन बातों से दैत्य ने प्रसन्न होते हुए कहा, ‘‘हाँ, तुम सही कह रहे हो। तुम मुझे बहुत ही ईमानदार व्यक्ति लगते हो।’’ यह कहकर दैत्य ने रॉबिन से हाथ मिलाने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया।
रॉबिन ने सोचा कि यदि मैंने अपना हाथ इसके हाथ में दिया तो पक्का मेरे हाथ का कचूमर निकल जाएगा।
इसलिए उसने तत्काल अपना लोहे का हल दैत्य की ओर बढ़ा दिया। दैत्य ने उसे रॉबिन का हाथ समझकर पकड़ा और जोर से दबाया।
इस दृश्य को देखकर वहाँ खड़े सभी लड़के जोर से हँसने लगे।
रॉबिन बड़े ध्यान से सभी लड़कों को देख रहा था। तभी उसे एक लड़का उसका नाम लेता हुआ सुनाई दिया।
जिस लड़के ने उसका नाम लिया था उसे ध्यान से देखा।
एक गहरी साँस लेकर रॉबिन ने सोचा, ‘‘मुझे अपनी जिन्दगी के लिए एक प्रयत्न करना ही होगा। इस लड़के की ओर इशारा करके देखता हूँ।’’
रॉबिन फिर दैत्य की ओर मुड़ा और उस बालक की ओर इशारा करते हुए बोला, ‘‘यह है फिलिप।’’
शेष सभी बालक चिल्ला उठे, ‘‘हाँ, यही फिलिप है। पलक झपकते ही रॉबिन ने फिलिप का हाथ पकड़ा और पूरी शक्ति से महल के प्रवेश द्धार की ओर दौड़कर बाहर निकल गया।
फिलिप को साथ लेकर वह अपने शहर आया और उसे उसके माता-पिता को सौंप दिया।
रॉबिन की दयालुता के लिए फिलिप के माता-पिता ने उसे तहे दिल से आशीर्वाद दिया।
उनका पुत्र अब काफी बड़ा हो चुका था जिसे पाकर वे बहुत प्रसन्न थे।
पूरे राज्य में रॉबिन की बहादुरी की प्रशंसा हो रही थी।
Image Credit: animeukiyo
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