दुर्जन सदा दुर्जन ही रहता है।
किसी जंगल में एक बूढ़ा बाघ रहता था। बुढ़ापे के कारण उसके अंग शिथिल हो गए थे।
अपने भोजन के लिए जानवरों का शिकार करना बाघ के लिए अत्यंत कठिन हो गया था किंतु जीवित रहने के लिए उसे खाना तो खाना ही था।
एक दिन वह शिकार की खोज में इधर-उधर घूम रहा था। तभी उसकी दृष्टि किसी चमकती हुई वस्तु पर पड़ी।
पास जाकर देखा तो वह एक सुनहरा कंगन था। बाघ कंगन उठाकर सोचने लगा कि वन में इतना कीमती कंगन भला आया कहाँ से…
अचानक उसे सामने से एक आदमी आता दिखाई दिया। बाघ को एक युक्ति सूझी। वह सामने के सरोवर के निकट जाकर चुपचाप लेट गया।
पास के गाँव से आता हुआ यात्री उस सोए हुए बाघ को देखकर घबरा उठा। तभी उसकी दृष्टि बाघ के पास पड़े हुए सुनहरे कंगन पर पड़ी।
लोभ ने उसके मन में सिर उठाया और मन ही मन वह कंगन पाने की युक्ति सोचने लगा। इधर बाघ ने धीरे से अपना सिर उठाया, यात्री की ओर देखा और उसके मन की बात पढ़ने लगा।
दोनों की दृष्टि मिली पर चालाक बाघ ऐसा निश्चेष्ट पड़ा रहा मानो शरीर में शक्ति ही नहीं हो।
उसकी दारुण दशा को देखकर यात्री ने सोचा कि यह तो अत्यंत वृद्ध है और मुझ पर हमला नहीं करेगा।
तभी बाघ ने मानव आवाज में कहा, “मित्र! क्या सोच रहे हो? मैं तुम्हारा अहित नहीं करूँगा। मेरे पास आओ।”
एक बाघ को मनुष्य की तरह बोलते हुए देखकर यात्री आश्चर्यचकित रह गया। डरते-डरते उसने कहा, “सच पूछो, तो मैं तुम्हारे पास पड़े हुए उस सुनहरे कंगन के बारे में सोच रहा था।”
बाघ ने कहा, “अच्छा, अच्छा! वह कंगन… हाँ, हाँ! उसी कंगन को किसी को दान में देने की प्रतीक्षा में ही तो मैं बैठा हूँ।” यात्री को अचंभित देखकर बाघ ने फिर कहा, “आश्चर्यचकित मत होओ। मैं पहले अत्यंत खूंखार था। अपने मार्ग में आने वाले किसी को भी नहीं छोड़ता था। अपने किए हुए पापों की सजा अब मैं भोग रहा हूँ। अपने परिवार के सभी सदस्यों को एक-एक कर मैं खा चुका हूँ। भाग्यवश एक संत मुझे मिले। उन्होंने मुझे यह सुनहरा कंगन देकर कहा कि इसे किसी जरूरतमंद को दान में दे देना तो तुम्हारे सारे पाप धुल जाएंगे। मैं किसी ऐसे ही व्यक्ति की प्रतीक्षा कर रहा हूँ जिसे मैं यह कंगन दे सकूँ। मेरी समझ से तुम उपयुक्त पात्र हो। पर दान लेने से पहले तुम्हें इस सरोवर में स्नान करके पवित्र होना पड़ेगा।”
बाघ की बात सुनकर यात्री हक्का-बक्का रह गया। दान स्वरूप सुनहरा कंगन मिलना तो बड़े सौभाग्य की बात थी पर वह बाघ पर कैसे विश्वास करे?
क्या भरोसा है कि बाघ सत्य ही कह रहा है? यात्री सरोवर में स्नान के लिए जाने में हिचकने लगा। तभी लोभ ने उसके मन में सिर उठाया। यात्री विचार करने लगा कि बाघ तो सचमुच बहुत बूढ़ा है। उसके दाँत और नाखून भी घिसे से दिखते हैं। ऐसे में उससे क्या डरना… वह अवश्य ही अपने पापों को प्रायश्चित्त करना चाहता होगा।
ऐसा विचार कर यात्री स्नान करने के लिए सरोवर के पास गया। पानी में अपना पैर डालते ही वह भीतर की ओर ध्ंसने लगा। जितना वह पैर निकालने की चेष्टा करता उतना ही और ध्ंसता जाता।
उसकी यह स्थिति देखकर बाघ ने आश्वासन देते हुए कहा, “मित्र! चिंता मत करो। ठहरो, मैं तुम्हारी सहायता करता हूँ।” यात्री के पास बाघ पर भरोसा करने के अतिरिक्त कोई और चारा नहीं था।
उसने समझा कि बाघ आकर उसे खींचकर बाहर निकाल देगा। बाघ उठकर सरोवर के किनारे आया। लपककर उसने यात्री का कंधा पकड़ा और उसे बाहर खींच लिया।
बाघ की पकड़ मजबूत थी। यात्री समझ गया कि अब उसका अंत निकट ही है। बाघ ने उसे मूर्ख बनाकर अपना शिकार फँसाया है।
अब उसका बचना असंभव है। बाघ ने यात्री को मारकर जी भरकर अपनी भूख मिटाई। सुनहरे कंगन के लोभ के कारण ही बेचारा यात्री बेमौत मारा गया।
Image Credit: You Tube: Hindi Stories Kahaniya
ऐसे ही अच्छे अच्छे लेखों के अपडेट पाने के लिए हमारे फेसबुक पेज मनाचे Talks हिंदी को लाइक करें।और वॉट्सएप पर लेख का अपडेट पाने के लिए यहां क्लिक करें ।