मौत के करीब पहुंचे लोगो के सबसे बड़े पछतावे | Regrets people have at the death bed in hindi
हिंदी मे एक कहावत है “कोई भी इंसान सदा के लिए नही रहता”। ये बात सच है की जन्म लेना और मरना दो सबसे बड़े सच हैं, जिन्हे किसी भी कीमत पर बदला नही जा सकता। (Regrets people have at the death bed in hindi)
इसी जन्म और मृत्यु के बीच के प्रोसेस को लाइफ यानी ज़िंदगी कहते हैं। कहा जाता है की ज़िंदगी को कैसे जीना है वो उसी इंसान पर डिपेंड करता है, पर ये बात पूरी तरह से सच नही है जिसे हम Bronnie ware के द्वारा लिखी एक बहुत ही रोचक किताब ‘Regrets of the dying’ मे जानेंगे।
Bronnie, पेशे से एक नर्स हैं, जिन्होंने अपने जीवन का एक लंबा वक़्त उन लोगो के साथ गुजारा था जो मौत के बहुत करीब थे।
इन लोगो की लाइफ जर्नी और पीछे छुटतें कुछ सपनो और इच्छाओं को बड़ी करीब से जाना और समझा था। अपने इसी अनुभव को उन्होंने एक किताब का रूप दिया
इन पछ्तावो में से आज हम उन पांच सबसे बड़े पछतावो के बारे में जानेंगे जिसे लेखिका ने अपनी किताब में लिखा है
1 ) काश मै मन मुताबिक अपनी ज़िंदगी को जी पाता, ना की वो ज़िंदगी जिसे दूसरों ने मुझ पर थोपा (I wish I’d had the courage to live a life true to myself, not the life others expected me)
जब हम अपने जीवन के आखरी पडाव में पहुँचते हैं,पीछे मुड़ कर देखते हैं और अपनी ज़िंदगी के अनुभवों को महसूस करने का प्रयास करते तो ज़िंदगी किसी सीरियल के एपिसोड्स की तरह छोटे छोटे
पार्ट की तरह नज़र आती है, कुछ अनुभव अच्छे होते हैं तो कुछ बुरे, कुछ सपने पूरे होते हैं तो कुछ अधूरे इन सबके बीच मे एक सवाल दीवार की तरह हमारे सामने खडा हो जाता है की क्या सच में मैंने अपनी ज़िंदगी को जिया है या सिर्फ इसे काटा?
ये सवाल मन मे आते ही हम अपने उन फैसलों का मूल्यांकन करने लगते हैं जो अपनी ज़िंदगी में हमारे द्वारा लिए गए होते हैं। उस जगह पर हम पाते हैं की हमारे जीवन से जुड़े अधिकतर फैसले, अधिकतर काम हमने अपनी ख़ुशी से नही चुना होता बल्कि इन सबके पीछे समाज और उसके द्वारा थोपे गए नियम होते हैं।
चाहे हम एक स्टुडेंट हो या नौकरी करने वाले हो हम अपने जीवन की नाव को दूसरों के हाथों थमा देते हैं, और लहरों के थपेड़े खाते हुए एक अंजान सफ़र में चल देते हैं। ये सफ़र जब आखरी पडाव में होता है तो हमारे सामने रिग्रेट करने के सिवा और कुछ नहीं बचता।
2) काश, मै इतनी मेहनत नही करता (I wish I hadn’t worked so hard)
हम ज़िंदगी की ट्रेडमिल पर लगातार दौड़ते जाते हैं, और आशा करते हैं की ये दौड़ हमें हमारी जीवन की खूशीयों की तरफ ले जायेगी। हम पैसों को ही ज़िंदगी मान लेते हैं, हम ये मान लेते हैं की ज्यादा पैसे कमाकर हम ज्यादा खुश रह पाएंगे, जींदगी को और अच्छी तरीके से जी पाएंगे।
पर हम ये भूल जाते हैं की ज़िंदगी कभी किसीका इंतज़ार नही करती ये तो चलती रहती है किसी रेलगाड़ी की तरह, और किसी station पर रुक जाती है। इसके रुकने से पहले ही सफ़र के दौरान हमे इस रेल की खिड़की से बाहर के नज़ारो का लुत्फ़ लेते रहना चाहीये नहीं तो ये नज़ारे पार हो जायेंगे, और हमारे पास सिवाय regret करने के कुछ नही बचेगा।
जीवन के आखिरी पडाव पर सभी को ये रिग्रेट जरूर होता है की काश हमने अपने बच्चो का बचपन अपने जीवन साथी के साथ को अच्छी तरह से जिया होता, पर अफसोस रेल तबतक अपने पडाव तक पहुँचने वाली होती है।
3) काश, मै अपनी भावनाओं को बयां कर पाता (I wish i’d had the courage to express my feelings)
इंसान और एक जानवर में सबसे बड़ा फर्क ये होता है की इंसान अपनी भावनाओं को बखूबी बयां कर पाता है। ये खूबी भगवान ने हम इंसानो को इसलिए दी है क्योंकि हम सामाजिक प्राणी होते हैं, हम समाज मे रहते हैं, अलगअलग रिश्तों से जुड़े होते हैं।
हर इंसान को लेकर हम में कुछ भावनाएं होती हैं, जिनको बयां करना हमारे लिए बहुत ज़रूरी होता है। पर कई बार हम एक रिश्ते को बचाने या उसे खराब होने के डर से अपनी फीलिंग्स को बयां नही कर पाते।
ये हमारे अंदर अंतिम रूप से कड़वाहट और चिरचिडेपन को पैदा करता है। एक सच्चे रिश्ते को मजबूत बनाना या एक झूठे रिश्ते से मुक्ति पाना दोनों इसपर ही निर्भर करता है।
4) काश, मैं अपने दोस्तों से जुड़ा रह पाता (I wish I had stayed in touch with my friends)
कहा जाता है दोस्तों के बगैर ज़िंदगी अधूरी होती है, और ये बात सच भी है क्योंकि दोस्ती एक ऐसा रिश्ता है जिसे हम खुद चुनते हैं। दोस्त वो लोग होते हैं जिनसे हम अपने दिल की सभी बातों को साझा कर पाते हैं।
दोस्त केवल साथ रहते नहीं साथ देते हैं। पर अफसोस आज की इस भाग दौड़ भरी ज़िंदगी ने फिसलते रेत की तरह दोस्ती के रिश्ते को हमसे अलग कर दिया है। दोस्त और दोस्ती के मायने हमे अपने ज़िंदगी के आखरी पलो में ही समझ आती है जब हमारा शरीर थक चुका होता है उस भागदौड़ से।
उस वक़्त हम अपने दोस्तों का साथ चाहते हैं, पुराने पलो को जीना चाहते हैं। पर अफोस् की ऐसा कुछ नही हो पाता, उस वक़्त हम पछताते हैं की काश मैंने दोस्तों और दोस्ती को थोड़ा वक़्त दिया होता।
5) काश, मैं खुद को खुश रहने देता(I wish that I had let myself be happier)
हर इंसान अपनी ज़िंदगी में खुशी ढूंढता है। उसके द्वारा किया गया हर एक काम इसी खुशी को ढूंढने के लिए किया जाता है। यहाँ हम ये भूल जाते हैं की खुशी केवल अपने अंदर ढुंढी जानी चाहिए ना की बाहर।
हम दूसरों को दिखाने के लिए एक अलग दुनिया मे जीने लगते हैं, हम बाहरी तौर पर मुस्कान लिए अंदर ही अंदर घुटते ही रहते हैं। ना हम में दुनिया के बनाये नियमों के खिलाफ जाने की हिम्मत होती है ना अपने कंफर्ट ज़ोन से बाहर जाने की।
हम एक ऐसे भवर मे खुद को अंत में पाते हैं जहाँ कोई खुशी नही होती होता है तो केवल और केवल पछतावा।
इसिलिए कहा जाता है की ज़िंदगी खुद की चॉइस है, इमान्दारि से चुनिए, खुद के लिए चुनिए, खुशीयों को चुनिए।।
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