खुद को आशावान बनाए रखने के लिए कुछ SIMPLE TIPS
मनुष्य जीवन गति का प्रतीक है तो आशा उसकी गति को सतत् एवं स्थिर बनाए रखने की ऊर्जा या एनर्जी है।
अगर उसे यह ऊर्जा पर्याप्त मात्रा में मिलती रहती है तो समझ लो कि उसकी गति सरल बनी रहती है और कभी भी किसी प्रकार का व्यवधान उत्पन्न नहीं होता है।
मनुष्य जीवन को यह ऊर्जा पर्याप्त मात्रा में तभी मिल पाती है जब मनुष्य आशावान बना रहे और उसके मन में आगे बढ़ने या प्रगति करने के उत्साह बरकरार रहे।
यदि मनुष्य आशावान होने के बजाय निराशावादी हो जाता है तो उसके जीवन की गति सरल नहीं रह पाती है और उसमें कुछ नया करते हुए आगे बढ़ने या प्रगति करने का उत्साह कम हो जाता है।
अब सवाल यह उठता है कि मनुष्य खुद को हमेशा आशावान बनाकर कैसे रख सकता है, क्योंकि जीवन में उतार-चढ़ाव आते-जाते रहते हैं और कई बार ऐसी परिस्थितियां पैदा हो जाती हैं कि उसे हर हाल में परेशानियों को झेलना पड़ता है।
अगर परेशानियां गंभीर रूप धारण कर लें तो मनुष्य निराशा और नाउम्मीदी का शिकार बन ही जाता है।
फिर ऐसी परिस्थितियों में वह खुद को कैसे संभाले और किस तरह से खुद को आशावान बनाकर रखे।
घबराइए नहीं इसके भी बहुत से उपाय हैं। आज हम आपको ऐसे ही कुछ उपायों से अवगत कराने जा रहे हैं।
आइए, जानें कि ऐसे कौन से उपाय हैं जो आपकी इस बारे में मदद कर सकते हैं।
१] सकारात्मक नज़रिया
व्यक्ति को अपना नजरिया सकारात्मक या हर परिस्थिति में गुड फीलिंग वाला नजरिया बनाए रखने की आदत डालनी चाहिए।
विपरीत परिस्थितियों से घबरा कर सोच को नकारात्मक नहीं बनाना चाहिए।
हमेशा यह सोचना चाहिए कि दिन है तो रात का आना भी अटल है।
मतलब कि सुख या अच्छी परिस्थितियां हैं तो फिर बुरी या दुख-कष्ट वाली परिस्थितियां भी आनी ही हैं और उसे हर तरह की परिस्थितियों में खुश रहने का प्रयास करना है।
अगर वह दृढ़ होकर प्रयास करने की ठान लेगा तो यह उसका स्वभाव बन जाएगा और फिर हर परिस्थिति में आशावान रहकर उन्नति के मार्ग पर आगे बढ़ने के लायक बन सकेगा।
२] खुद में धैर्य बल पैदा करना
धैर्य मात्र कहने और दिखाने से नहीं आ जाता है,बल्कि उसे अपने भीतर की ताकत या बल बनाने के लिए निरंतर अभ्यास करना पड़ता है।
अगर व्यक्ति छोटी-मोटी चीजों के मामले में धैर्य दिखाना शुरू करता है तो फिर धीरे-धीरे यह उसके अंदर एक ऐसा बल या इनर पावर बन जाती है कि वह बड़ी से बड़ी परिस्थितियों या गंभीर और मन को विचलित करने वाले मामलों में भी धैर्य का परिचय दे पाने में समर्थ हो जाता है।
धैर्य का व्यक्ति के भीतर की आशा या उम्मीद से गहरा संबंध होता है।
जिसके स्वभाव में धैर्य समा जाता है तो वह सरलता से खुद को आशावान बनाकर रख सकता है और बिना विचलित हुए जीवन पथ आगे बढ़ सकता है।
अतः खुद को धैर्यवान बनाकर रखना सीख जाएंगे तो आशावान बने रहना खुद ही आ जाएगा।
३] प्रत्येक कार्य समयानुसार करना
हमारे प्रबुद्ध लोग सदा ही यह कहते आए हैं कि जो व्यक्ति अपने सब काम समय पर पूरे करता है वह उन्नति करता है और खुश रहता है।
इसके विपरीत जो समय का मोल और काम का महत्व न समझते हुए समय पर कार्य नहीं करता है वह सदा पछताता है और दुख या कष्ट भोगता है।
जानते हो वे लोग ऐसा क्यों कहते आए हैं? वे ऐसा इस कारण कहते आए हैं कि समय पर कार्य करने से मनुष्य में आशा का समावेश रहता है और वह आशावान रहकर परिश्रम व संघर्ष कर पाता है।
फलतः जीवन में उन्नति के आसार पनपते हैं और वह सदा सुखी रहता है।
४] हीनता या कुंठाएं अपने अंदर पनपने न देना
अगर व्यक्ति किसी प्रकार की हीनता या कुंठा से ग्रस्त हो जाता है तो भी उसका आशावान या आशावादी बने रहना मुश्किल हो जाता है।
कुछ मानसिक कुंठाएं या विकृतियां इस प्रकार हैं-ईर्ष्या, भय, क्रोध, चिड़चिड़ाहट, हीनता आदि की भावनाएं।
इन सभी प्रकार की कुंठाओं का व्यक्ति के पारिवारिक, सामाजिक या अन्य संबंधों पर गंभीर हानिकारक प्रभाव अंकित होता है और उसके आचार-व्यवहार एवं सोच में ऐसी नकारात्मकता आ जाती है कि वह कभी भी खुद को आशावान नहीं रख पाता।
एक तरह से निराशा को ही अपना भाग्य समझने लगता है।
अतः अगर जीवन में आशावान बने रह कर आगे बढ़ना चाहते हैं तो इस तरह की मानसिक कुंठाओं को कभी अपने आसपास भी मत फटकने दीजिए।
शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य का भी पूरा ख्याल रखिए।
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