स्त्री इश्वर की, एक ऐसी रचना…

स्त्री इश्वर की, एक ऐसी रचना…
जिसे बना के खुद ख़ुदा ने भी समझ पाने की हिम्मत नहीं की शायद।
एक ऐसी अनबुझी पहेली जो जितनी सरल और सहज प्राप्य है,
जटिल ही नहीं, नामुमकिन है सदैव पूर्णतया, हासिल कर पाना उसको उतना ही, गुत्थियों का, एक ऐसा पुलिंदा…
जिसकी गाँठें, जन्म जन्मानतर से अनसुलझी है।
दिगंत को सुवासित, करने वाली, खुशियों से भरी
एक ऐसी गुलदस्ता, जो सूखने तक अपने वजूद का भान कराती रहती।
कभी एक रूहानी अहसास और एक विकराल आभास भी कभी -कभी वो।
एक ऐसा रहस्य जिसे जान पाने की, हसरत करें ऐसे
हिमायती नहीं या हिमाक़त का हौसला नहीं किसी में शेष ..
या फ़िर हिकारत से ज्यादा की कहीं कोई गुंजाइश बाँकी नहीँ अब ।।
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बेहतरीन विचार
Super
Dhanyavaad Aadarneey
Bahut bahut dhanyavaad
हमारे हमारे इंदोर स्थित साहित्यकारों के मंच में हम आपको आमंत्रित करना चाहेंगे।
मुझे बेहद खुशी होगी आदरणीय
मुझे बेहद खुशी होगी आदरणीय