पिता की ह_त्या का बद_ला लेने को तल_वार नहीं किताब उठाई और बन गया आईपीएस
“खू_न के बदले खू_न” यह सूक्ति हमारे समाज में आम है इसका अर्थ है कि किसी ने किसी के परिजन की ह_त्या कर दी तो उसकी ह_त्या का बदला ह_त्या करके की चुकाया जाएगा।
ऐसी सोच बहुत से लोग रखते हैं लेकिन इस सोच से अलग एक लड़के ने अपने पिता की ह_त्या के बाद अपने दु_श्म_नों से बद_ला लेने के लिए आईपीएस ऑफिसर बनने का फैंसला किया।
जानिए आईपीएस ऑफिसर के बारे में।
सूरज कुमार राय बचपन से ही पढ़ाई-लिखाई में बेहद होशियार थे और एक सफल इंजीनियर बनना उनका और उनके पिता का सपना था। पिता ने यहाँ तक ठान लिया था कि यदि बेटे की पढ़ाई के लिए जमीन भी बेचनी पड़े तो भी वे पीछे न हटेंगें।
12 वीं की परीक्षा पास करने के बाद सूरज कुमार राय ने इलाहबाद के मोती लाल नेहरू इंजीनियरिंग काॅलेज में एडमिशन ले लिया। बेटे के एडमिशन के बाद सूरज कुमार राय और उनके पिता बेहद खुश थे परन्तु उनकी खुशियों को जाने किसकी नजर लग गई और एडमिशन के महीने भर के अंदर ही उनके पिता की ह_त्या हो गई।
पिताकी ह_त्या की खबर सुनकर वे गाँव आए और जो लोग ह_त्या में शामिल थे उनको सजा दिलाने के लिए उन्होंने बहुत सारे सुबूत इकट्ठा करके पुलिस को दिए लेकिन पुलिस ने उनको गंभीरता से नहीं लिया। वे जब भी थाने जाते थे तो उनको कई-कई घण्टे बैठाया जाता था।
पुलिस वाले उनसे व उनकी माँ से बदतमीजी भी कर दिया करते थे। लाख प्रयासों के बाद भी वे अपने पिता के का_तिलों को सजा न दिला सके। अदालतों के चक्कर काटने में भी उनको बहुत कठनाईयों का सामना करना पड़ा।
इस पूरे घटनाक्रम के दौरान सूरज ने देश के सिस्टम को बहुत करीब से देखा और महसूस किया कि सुधार की बहुत जरूरत है। लेकिन सुधारने के लिए उस सिस्टम का हिस्सा बनना होगा और हिस्सा बनने के लिए आईपीएस बनना होगा। यह बात सोचकर उन्होंने सिविल सेवा परीक्षा में बैठने का मन बना लिया।
इतनी आसान भी नहीं थी यूपीएससी में सफलता
अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद सूरज कुमार आईपीएस की तैयारी करने दिल्ली चले गये। उन्होंने ठान लिया कि चाहे जो हो जाए वे आईपीएस बनकर ही दम लेंगे।
जी-तोड़ मेहनत के बाद भी पहले प्रयास में उनका प्री एक्जाम भी पास नहीं हुआ लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और दुबारा पढ़ाई करना शुरू की।
दूसरी बार में प्री तो क्लीयर हुआ लेकिन मैंस न हो पाया परन्तु उनका जज्बा कम नहीं हुआ और साल 2017 की परीक्षा में उन्होंने 117 रैंक लेकर इस परीक्षा को पास किया।
वे चाहते तो आईएएस के लिए भी जा सकते थे लेकिन उनके मन में कुछ अलग करने की इच्छा थी इसीलिए उन्होंने आईपीएस चुना।
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