खुद को खुश रखने की कला जानिए इस लेख में
खुद को खुश रखना भी एक कला है, जानिए कैसे बनना है इस कला में पारंगत
जीवन की प्रवृत्ति कैसी है?
जीवन की प्रवृत्ति परिवर्तनशील है। इस जीवन में एक पल दुख-दर्द की कष्टदायी धूप लेकर आता है, तो दूसरा पल सुख और आनंद की शीतल चांदनी।
दुख-दर्द में मन उदास होता है और चेहरा मुरझा जाता है।
आंखों में आंसू भी छलक आते हैं। मगर सुख और आनंद की घड़ी में ऐसा नहीं होता।
उस घड़ी में मन प्रसन्न हो जाता है और चेहरा फूलों-सा खिल उठता है।
कभी-कभी सुख व आनंद में भी आंखों में आंसू छलक आते हैं मगर उनका एहसास अनूठा ही होता है।
उसको शायद बयां करना भी मुश्किल है।
सब सदा खुश क्यों नहीं रहे पाते?
संसार में अधिकांश लोग ईश्वर से यही प्रार्थना करते हैं कि, “हे ईश्वर, हमें जीवन में सिर्फ सुख,आनंद व
खुशियां ही दे। दुख,दर्द और कष्ट कभी एक पल के लिए भी मत दे।”
पर क्या ईश्वर उनकी यह प्रार्थना सुनता है? क्या कोई ऐसा आदमी है, या क्या आज तक कोई ऐसा आदमी हुआ है जिसने जीवन में सिर्फ सुख ही देखे हों, और आखिरी सांस लेने तक खुश ही रहा हो।
दुखी कभी हुआ ही न हो। चिराग लेकर ढूंढोगे तो भी पूरी कायनात में एक भी ऐसा आदमी नहीं मिलेगा।
क्योंकि जीवन नदी की तरह सदा-सदा व लगातार आगे बढ़ता रहता है।
और जो आगे बढ़ता रहता है उसके मार्ग में उतार-चढ़ाव आना लाजिमी है।
इसीलिए सुख-दुख रूपी उतार-चढ़ाव हमारे जीवन का अभिन्न अंग हैं।
सदा सुख देने की प्रार्थना ईश्वर से करो न करो कोई फर्क नहीं पड़ता।
सुख के साथ दुख तो आना ही है। हां, एक बात और यह भी है कि, हमारे हिस्से में दुख देने वाला ईश्वर तो हैं नहीं…
हमारे अधिकांश दुखों का कारण हम खुद ही होते हैं।
इसीलिए अगर हम कोशिश करें तो खुद को अवश्य ही खुश या प्रसन्न रख सकते हैं।
खुद को खुश रखने की कला कैसे सीखें?
सच कहें तो खुद को खुश रखना भी एक कला या आर्ट है और इसमें हर व्यक्ति को पारंगत होना चाहिए।
ताकि वह अपना पूरा जीवन खुश रहकर बिता सके।
खुद को खुश रखने की कला को समझने या सीखने के लिए आप यहां दी गयी टिप्स की मदद ले सकते हैं।
१) गंभीर रूप से अंतर्मुखी बनना छोड़िए
जब आदमी गंभीर रूप से अंतर्मुखी होता है तो किसी के सामने भी खुलकर नहीं बोलता है।
अपने ही अच्छे-बुरे विचारों में खोया रहता है और संकोची हो जाता है।
उसके भीतर चलचित्र की तरह चलने वाले विचार अक्सर उसे परेशान करते रहते हैं और वह खुश नहीं रह पाता।
इसलिए खुद को गंभीर रूप से अंतर्मुखी होने से बचाइए।
अपनी बात या विचारों को निर्भीडता से प्रकट करने की आदत डालिए।
यार-दोस्तों या सगे-संबंधियों से खुलकर मिलने और हंसकर बातचीत करने का दृढ़ निश्चय करेंगे, तो जल्दी ही आप इस समस्या से मुक्त हो जाएंगे।
२) परिस्थितियों के अनुरूप बदलना सीखिए
देखने में आता है कि जो व्यक्ति परिस्थितियों के अनुरूप ढलना नहीं जानता अक्सर दुख-तकलीफ़ों का सामना करने को विवश होता रहता है।
इसका कारण यह है कि कुछ परिस्थितियां सुख देने वाली तो कुछ दुख देने वाली या फिर आश्चर्य व असमंजस में डालने वाली होती हैं।
तथा सब अलग-अलग तरह की फीलिंग पैदा करती हैं।
अगर हम इनके अनुसार खुद को नहीं बदलते तो खुद के भावों को संतुलित नहीं रख पाते तथा हमें परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
इसलिए खुद को ऐसा लचीला बनाइए कि जहां जैसी परिस्थितियों में जीना पड़े उनमें आसानी से ढल जाएं और खुद को पूरी तरह से संतुलित रख कर खुश रह पाएं।
जीवन की इस कला में निपुण होने के लिए आपको अपने अंदर धैर्य, सहनशीलता, भावात्मक दृढ़ता जैसे गुणों को विकसित करना चाहिए।
३) जरा-जरा-सी बातों पर रूठने की आदत छोड़िए
अगर आप जरा-जरा-सी या छोटी-छोटी बातों पर रूठने या नाराज होने वाली आदत के धनी हैं, तो उसे अभी से छोड़ने की कोशिश करना शुरू कर दीजिए।
क्योंकि यह आदत आपकी स्वाभाविक कमजोरी है तथा आप इसके कारण भी अक्सर दुख या कष्ट पाते हैं।
अगर यह आदत जड़ पकड़ जाती है तो जीवन में सामान्य रह पाना या सामान्य व्यवहार करना मुश्किल हो जाता है।
आदमी खुद भी औरों से नाराज रहता है तथा और भी उससे परेशान रहते हैं।
ऐसा व्यक्ति खुद को कभी शांत एवं खुश नहीं रख पाता।
अतः खुद को उदार बनाइए, सबका मान-सम्मान करने की आदत डालिए और सबसे मिल-जुलकर रहने में आनंद लेना शुरू कीजिए।
अपनों व परायों के बीच ऐसा पात्र बनने की कोशिश कीजिए जिसके साथ सब बैठना और बातचीत करना पसंद करें।
४) अपने साथ-साथ दूसरों को सुख देना सीखिए
कुछ व्यक्ति केवल अपने ही सुखों या खुशियों के बारे में सोचते हैं।
उनकी यह सोच उनके मन में कई तरह के दोष पैदा कर देती है, जैसे ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, लालच, अहंकार, भय आदि।
यही दोष उसके पास सबकुछ होते हुए भी कभी उसे खुश नहीं रहने देते, क्योंकि सदैव उसके मन को अस्थिर रखते हैं और वह अपनी नकारात्मक सोच के कारण दुख भोगता है।
मगर जो लोग अपनी खुशी के साथ-साथ दूसरों की खुशी का भी ख्याल रखते हैं, वे सामान्यतः ऐसे मानसिक दोषों से मुक्त तथा खुश रहते हैं।
अतः अपने साथ-साथ दूसरों को सुख या खुशी देने की आदत डालिए, ताकि आपकी खुशियों का आपसे ज्यादा ख्याल आपके आसपास के लोग रखें।
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