शेखी बघारने वाले दोस्त और शेर

शेखी बघारने वाले दोस्त और शेर

एक छोटे से नगर में चार ब्राह्मण विद्यार्थी रहते थे। वे एक-दूसरे के बहुत अच्छे मित्र भी थे।

उनमें से तीन पढ़ाई-लिखाई में बहुत होशियार थे और बहुत चतुर माने जाते थे। चौथा विद्यार्थी पढ़ाई में बहुत तेज नहीं था लेकिन उसे दुनियादारी की समझ काफी थी।

एक दिन एक विद्यार्थी बोला, “अगर हम लोग राजाओं के दरबारों में जाएँ तो अपनी बुद्धि के बल पर बहुत नाम और दाम कमा सकते हैं।”

सारे विद्यार्थी तुरंत मान गए। वे यात्रा पर निकल पड़े। रास्ते में उन्हें शेर की खाल और हड्डियाँ पड़ी मिलीं।

पहला विद्यार्थी जोश में आकर बोला, “हमें अपने ज्ञान की परीक्षा करनी चाहिए। चलो इस शेर को फिर से जीवित करते हैं! मैं इसके कंकाल को सही तरह से व्यवस्थित कर सकता हूँ।”

“मैं कंकाल में माँस और खून भर सकता हूँ,” दूसरे विद्यार्थी ने भी शेखी बघारी।

“मैं फिर इसके शरीर में जान डाल सकता हूँ। यह फिर से जीवित जानवर बन जाएगा।” तीसरा विद्यार्थी बोल पड़ा।

चौथे विद्यार्थी ने कुछ नहीं कहा और तीनों की बातें सुनता रहा। इसके बाद उसने अपना सिर हिलाया और बोला, “ठीक है, तुम लोगों को जो अच्छा लगे, वैसा करो।

लेकिन पहले मुझे किसी पेड़ पर चढ़ जाने दो। तुम लोग बहुत होशियार हो। मुझे तुम लोगों के ज्ञान और बुद्धि पूरा भरोसा है।

तुम लोग शेर को अवश्य जीवित कर लोगे और जल्द ही यह मरा हुआ शेर जीवित होकर दहाड़ मारने लगेगा।

हालाँकि मुझे यह विश्वास नहीं है कि तुम लोग इस शेर का स्वभाव भी बदल पाओगे। शेर कभी घास नहीं खा सकता, जैसे मेमना कभी माँस नहीं खा सकता।” उसके साथी उसकी बात सुनकर हँस पड़े।

“तुम डरपोक हो। तुम्हें अपनी जान गँवाने का डर है। शर्म करो! तुम्हें हमारे ज्ञान पर भरोसा है लेकिन तुम्हें यह नहीं पता कि हम लोग जिस जानवर को जीवित करेंगे, वह पूरी तरह हमारे अनुसार ही कार्य करेगा। हम जिस जानवर को जीवनदान देंगे, वह भला हमारे ऊपर क्यों हमला करेगा? खैर, तुम चाहते हो तो छिप जाओ और हमारा कमाल देखो!”

चौथा विद्यार्ती दौड़कर एक पेड़ पर चढ़ गया। उसके सारे मित्र उसे देखकर फिर से हँस पड़े।

जब तीसरे विद्यार्थी ने शेर के शरीर में जान डाली तो शेर दहाड़ मारकर उठ बैठा। उठते ही उसने तीनों विद्यार्थियों पर झपट्टा मारा और उन्हें मारकर खा गया। चौथे विद्यार्थी ने ईश्वर को धन्यवाद दिया कि उसने उसे दुनियादारी की इतनी समझ दी कि उसने ईश्वर और उसके बनाए प्राणियों के काम में दखल नहीं दिया।

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