बिधवा बूढ़ी औरत की व्यथा
तेरे जानें के बाद अब कुछ भी अच्छा नही लगता, ये महल, आँगन, दरवाजा सच्चा नही लगता। जिसे तुम बोल कर खेलाते थे, बुढ़ापे का सहारा, ओ बेटा भी अब सच में कहूं वैसा नही...
तेरे जानें के बाद अब कुछ भी अच्छा नही लगता, ये महल, आँगन, दरवाजा सच्चा नही लगता। जिसे तुम बोल कर खेलाते थे, बुढ़ापे का सहारा, ओ बेटा भी अब सच में कहूं वैसा नही...