बेबस पिता
पिता पहन रहे थे कपड़े, बेटा बहुत व्याकुल था, साथ में मेला जाने हेतु, सच में वो आकुल था। सपनों के सागर आखों में, भाव बहुत उतरें थें, लाल पिला और सतरंगी, सब खिलौने अपने...
पिता पहन रहे थे कपड़े, बेटा बहुत व्याकुल था, साथ में मेला जाने हेतु, सच में वो आकुल था। सपनों के सागर आखों में, भाव बहुत उतरें थें, लाल पिला और सतरंगी, सब खिलौने अपने...
तेरे जानें के बाद अब कुछ भी अच्छा नही लगता, ये महल, आँगन, दरवाजा सच्चा नही लगता। जिसे तुम बोल कर खेलाते थे, बुढ़ापे का सहारा, ओ बेटा भी अब सच में कहूं वैसा नही...