पिघल रहे हैं हिमालय के ग्लेशियर, भारत समेत पूरे दक्षिण एशिया पर छाए संकट के बादल
ग्लोबल वार्मिंग इस समय पूरे विश्व के लिए विकराल समस्या है। दिन प्रतिदिन पूरे विश्व की बर्फ पिघल रही है। हिमालय की बर्फ भी बड़ी तेजी से पिघल रही है और इस बर्फ की वजह से दक्षिण एशिया खतरे पड़ता दिखाई दे रहा है।
दक्षिण एशिया की सभी सरकारें इस दिशा में काम कर रही हैं लेकिन अभी तक किसी के पास हिमालय की इस बर्फ का कोई ठोस उपाय नहीं है। इससे एक बात तो स्पष्ट है कि हिमालय ने जिस दिन भी अपना रौद्र रूप दिखाऐगा पूरी दक्षिण एशिया में सिर्फ तबाही ही नजर आएगी। इस तबाही की जद में भारत,पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान सबसे ज्यादा आएंगे।
पिछले कई सालों में उत्तराखंड की बाढ़ों ने मानव सभ्यता को समय-समय पर चेतावनी भी दे रही हैं लेकिन न तो किसी प्रदेश की और न ही किसी देश की सरकार इस तरफ ध्यान दे रहीं हैं। बहुत सारे वैज्ञानिक इस समय हिमालय की बर्फ पर रिसराकर रहे हैं। उनके मुताबिक हिमालय के गर्भ में इस समय पूरी दुनिया की तीसरी सबसे ज्यादा बर्फ है।
यह बर्फ इस समय बहुत तेजी से पिघल रही है । हिमालय में 40 साल पहले की बर्फ की अगर तुलना करें तो यह अपना एक चौथाई खो चुकी है। 1975 की तुलना में आज हिमालय का तापमान भी एक डिग्री तक बढ़ चुका है। इस साल कोलम्बिया यूनीवर्सिटी ने हिमालय को लेकर एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी।
इस रिपोर्ट के मुताबिक साल 200 से लेकर 1975 तक जितनी बर्फ पिघली थी उतनी बर्फ तो पिछले 2 सालों में ही पिघल गई। इस रिपोर्ट ने हिमालय के लगभग 650 ग्लेशियर्स पर अध्धयन किया है।
लंबे समय से इस रिपोर्ट से जुड़े रिसर्चर जोशुआ माॅरेर ने बताया कि हमने पता लगाने की कोशिश की लेकिन अभी यह पता नहीं लगा पाए कि आखिर यह बर्फ इतनी तेजी से क्यों पिघल रही है।
लेकिन यह रफ्तार मानव सभ्यता के लिए बड़ा खतरा है। रिसर्चर जोशुआ माॅरेर ने बताया कि साल 2000 तक बर्फ पिघलने की दर 0.25 मीटर पर वर्ष थी लेकिन यह दर अब बढ़कर 0.50 मीटर हर वर्ष हो गई है।
दुनियाभर के ग्लेशियर्स पर खतरा
2 लाख से ज्यादा बड़े ग्लेशियर्स इस समय पूरी दुनिया में हैं। ग्लोबल वार्मिंग के कहर के कारण अब लगभग सभी ग्लेशियर्स पिघलना शुरु हो गये हैं।
धरती के गर्भ में जो पानी है उसके बाद ग्लेशियर्स ही मीठे पानी का बड़ा भंडार हैं। इन पिघले ग्लेशियर्स पर ही बहुत बड़ी जनसंख्या निर्भर है। मानव की आर्थिक विकास की अंधी दौड़ इन ग्लेशियर्स पर आफत बनकर टूट पड़ी है।
कार्बन का बेहताशा उत्सर्जन और जीवाश्म का अंधाधुंध दोहन जीवाश्म का काल बनकर आ रहे हैं। इसी वजह से हमारी जीवन रक्षक परत यानी ओजोन परत में छेद भी हो गया है।
वैज्ञानिकों ने चेतावनी ने देते हुए कहा है कि अगर हम अब भी न संभले तो हम 2100 तक पूरे यूरोप का 80% तक ग्लेशियर्स खो देंगे। इससे फिर प्रदूषण भी बढ़ेगा और दुनियाभर में प्यास से मरने वालों की संख्या बढ़ेगी।
खतरे में है दुनिया की छत
तिब्बत का पठार जिसे दुनिया की छत के नाम से भी जाना जाता है यह खतरे में है भी और दुनियाभर के देशों को खतरे से आगाह भी कर रहा है।
विकास की अंधी दौड़ में दौड़ रहे मानव ने इस खतरे को नजरअंदाज करना शुरु कर दिया है।
ग्लोबल वार्मिंग से जुड़े वैज्ञानिकों ने पूरी मानव सभ्यता को चेतावनी दी है कि या तो सुधर जाओ वरना सबसे दर्दनाक समय और खतरनाक दिन देखने को तैयार रहिए।
नदियों पर भी संकट
ग्लोबल वार्मिंग के इस कहर से नदियाँ भी अछूती नहीं रहेंगी। पाकिस्तान की सिंधु नदी, भारत की गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों में पहले तो बहुत ज्यादा पानी आएगा और फिर धीरे-2 ये घटता जाएगा और
एक दिन ये नदियाँ सूख जाएंगी जिससे मानव, पेड़-पोधों, और जानवरों के लिए पानी का संकट उत्पन्न हो जाएगा। इसका असर तो बिजली उत्पादन पर ह
भी पड़ेगा।
समस्त मानव जाति खतरे में
माइक हुडमा जो क्लाइमेट चैंज एक्टिविस्ट हैं, ने कहा है कि सिर्फ एक दिन में इतने ग्लेशियर पिघल गये कि जितने में 40 लाख ओलम्पिक मैदान जितने स्वीमिंग पूल बनाए जा सकते हैं।
हुडमा ने चेतावनी देते हुए कहा कि अब हमें एक भी पल बर्बाद नहीं करना चाहिए। हमारे पास कोई दूसरा ग्रह नहीं है जहाँ हम रह लेंगे।
मानव जीवन केवल ग्लेशियर्स की बजह से ही है। दुनिया के लगभग 200 करोड़ लोग इन ग्लेशियर्स की वजह से ही जिंदा हैं और इनकी खेती भी इनकी वजह से ही पा रही है। अन्यथा की स्थिति में क्या होगा यह अब समस्त मानव जाति को सोचना है।
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